जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ,(ज़हीर इक़बाल) ख़बर है कि इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात मे आपसी संबंधो को मज़बूत करने करने लिए एक समझौता हो गया है।हालाँकि इस समझौते ने कई सवालात खड़े कर दिए हैं।इस समझौते का मुख्या अमरीका है।जो अरब पर अपने वर्चस्व की खातिर नित नए खेल खेला करता है। इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात ने आपसी संबंधों को सामान्य बनाने के लिए जो समझौता किया है, उसके बाद ही इसराइल ने वेस्ट बैंक में अपने कब्ज़े वाले हिस्सों की विवादास्पद योजनाओं को निलंबित करने पर सहमति ज़ाहिर की है।नेतन्याहू ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, इसराइल वेस्ट बैंक के बड़े हिस्सों को मिलाने की अपनी योजना स्थगित कर देगा।बताया जा रहा है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच बातचीत करवाई है। इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच रिश्तों को सामान्य करने को लेकर सहमति हो गई है यह घोषणा खुद अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने की है। एक संयुक्त बयान में राष्ट्रपति ट्रंप, इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और अबु धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद अल नाहयान ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि, “इस ऐतिहासिक सफलता से मध्य पूर्व में शांति बढ़ेगी.” अब तक इसराइल के अरब देशों के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं रहे हैं।लेकिन ईरान से जुड़ी चिंताओं ने इन दोनों देशों के बीच अब एक ‘अनौपचारिक संपर्क’ को जन्म दिया है।वैसे खाड़ी के देशों से अलग, अरब के दो और देशों जॉर्डन और मिस्र के साथ इसराइल के राजनयिक संपर्क हैं । अरब जो अपनी हुकूमतों को इस्लाम के नाम पर क़ायम किये हुए हैं।वह क़ुरान पाक के उस फरमान को भी भूल गए जिसमे यहूदी और नसारा की मज़म्मत करते हुए कहा गया है की ये हरगिज़ रहो रास्त पर नहीं आने वाले हैं सऊदी अरब हो या यूऐइ इन सबका मुश्तर्का दुश्मन ईरान है।अरब और अजम का झगड़ा बहोत पुराना है यहाँ तक की क़ुरान ए पाक मे ताम्बी की गई की अरबो को अजमो पर कोई बरतरी नहीं दी लेकिन अरब आज भी क़ुरान के फरमान के विपरीत अपने को मुसलमानो मे सबसे अफ़ज़ल समझते हैं।और पूरी दुंनिया के मुसलमानो को अपने से हक़ीर समझते है ।इसका अंदाज़ा मुशाहेदा अरब मे रहने वाले मुस्लमान अक्सर करते रहते हैं ।इस्लाम मे शराब और जुआ हराम होने के बाद आपको अरब मे बेयर बार और कसीनो यानि जुए खाने कसरत से मिल जाएगे। पार्किंग के लिए यहाँ मस्जिदों के किसी हिस्से को तोड़ देना आम बात है ।लेकिन उसके बाद भी ये सबके सब इस्लामिक मुल्क है ।दर असल मौजूदा वक़्त मे इज़राइल ईरान हिमायती मुल्को से चौतरफा घिरा हुआ है ।दूसरी तरफ तुर्की नई मुसीबत बनकर उभर रहा है ।तुर्की सऊदी अरब की माजूदा हुकूमत के रिश्ते सही नहीं हो सकते कहाँ है दूसरे विश्व युद्ध को कुछ ही सालो मे सौ साल पुरे होने वाले है इसके बाद जर्मन से हुए क़रार के तहत सऊदी आरब का निज़ाम तुर्की के तहत होगा ।अरब मुल्क मुत्तहिद होने के बजाय और बिखर रहे हैं। इसका असर पूरी दुन्या के मुसलमानो पर होंना लाज़मी है लेकिन अरब मुल्क अपने ज़ाती फायदे की बिना अमरीका और इज़राइल के दमान से लिपटे रहना चाहते है ।

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