जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ संवाददाता हाई कोर्ट की प्रयागराज बेंच ने आज ताज़िया दफ़न करने की इजाज़त नहीं दी , चारो रिटो को कोरोना का हवाला देते हुए ख़ारिज कर दिया ,याद रहे की कल मुंबई हाई कोर्ट मुंबई मे शर्तो के साथ जुलूस की इजाज़त दे चुका है ।समाज सेवी और शिया फ़िरक़े की नामवर शख्सियत कहे जाने वाले शौकत भारती की रिट पर अदालत ने कल फैसला रिज़र्व कर लिया था ।दर्ख़ास्तगुज़ार सय्यद शब्बीर शौकत आब्दी की रिट पर मशहूर अधिवक्ता के के राय और फरमान अहमद ने बहस की जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस शमीम अहमद के सामने ज़बर्दस्त बहस की रिट मे राज्य के गृह विभाग के प्रमुख और डीजीपी के साथ प्रयागराज के डीएम और बड़े पुलिस कप्तान को पार्टी बनाया गया था बताते चले की इसके अलावा रौशन खान और ज़ीशान मेहदी की रिट को भी उपरोक्त बेंच ने एक साथ सुना गया था।जिसमे अधिवक्ता वी एम ज़ैदी के अलावा मसूद अब्बास सय्यद काशिफ अब्बास रिज़वी ने बहस की। शब्बीर शौकत आब्दी की रिट पर मशहूर अधिवक्ता के के राय और फरमान अहमद नकवी ने कल कॉविड गाईड लाईन के अनुसार ताज़िए को दफ़न करने की अनुमति प्रदान करने का निवेदन इलाहाबाद हाई कोर्ट में किया। अदालत से निवेदन किया है कि जिस तरह से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाते है तो उसके परिवार को मट्टी दफ़न करने कि इजाज़त कोविड गाईड लाईन में दि गई है उसी तरह ताज़िए को भी दफ़न करने अनुमति मिलना चाहिए।
क्यों की मोहम्मद साहब के पूरे परिवार को बिना किसी जुर्म के अत्याचारी शासक यजीद ने मोहर्रम के महीने में 3 दीन का भूका प्यासा रख कर कतल करवा दिया था और उनके बचे हुए परिवार वालों को उन शहीदों के शव भी दफ़न करने नहीं दिए गए थे यही कारण है कि देश भर में 1 मोहर्रम को इमाम हुसैन व उनके साथियों की याद में उसी शव का प्रतीक ताज़िए रखा जाता है और 10 मोहर्रम को सुबह से लोग भुके प्यासे रहते है और फिर अपने अपने घर से ताजियों को एक शव यात्रा के रूप में करबला ले जा कर वोह ताज़िए दफन कर दिए जाते हैं उसके पश्चात ही लोग भोजन करते हैं पानी पीते है। चूंकि कोरोना फैला हुआ है इस लिए सारे जुलूस नहीं उठाए गए और ताज़िए के दफ़न होना उसी तरह आवश्यक है जैसे कि मट्टी का दफ़न होना इस लिए हमें मट्टी दफ़न होने कि गाइड लाइन के अनुसार उतने ही व्यक्तियों के साथ ताज़िए दफ़न करने की इजाज़त दी जाए।