जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ( संवाददाता )अज़ादारी इमाम हुसैन के खास मकसद से कायम होने वाले हुसैनाबाद ट्रस्ट पर ट्रस्ट की प्रशासनिक कमेटी के निराशाजनक आचरण से शिया समुदाय में बेचैनी पैदा हो रही है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की सरकार में भी हुसैनाबाद ट्रस्ट प्रशासन का मामला उस वक्त तूल पकड़ गया था। जब प्रशासन की तरफ से यह कहा गया था की इमामबाड़ा पहले टूरिस्ट प्लेस है। बाद में धार्मिक स्थल क्योंकि उस वक्त समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान और शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद के बीच शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मामले पर तनातनी इस कदर बढ़ हुई थी की यह समझा जा रहा था कि यह उसी तनातनी के नतीजे में हो रहा है। लेकिन मौजूदा वक्त में हुसैनाबाद ट्रस्ट प्रशासन के निराशाजनक रवय्ये से शिया समुदाय के लोग अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।समाजवादी पार्टी की सरकार में मौलाना को वक्फ बोर्ड की जो लड़ाई लड़ना पड़ी थी वह निर्णायक थी उस वक्त मौलाना को शिया समुदाय का भरपूर सहयोग मिला था इतना ही नहीं मोहम्मद आजम खान के लिए बद दुआओं का सहारा भी लिया गया था। ट्रस्ट के अधीन आने वाले बड़ा इमामबाड़ा मस्जिद ए आसफी और छोटे इमामबाड़ा वगैरह में मजलिस और मातम पूरी तरह से बंद है। क्योंकि इमामबाड़ा की तामीर का मकसद ही अजादारी इमाम हुसैन है। और वहां इन खास मोहर्रम के दिनों में मजलिस ए आजा ना होना आजादारों की भावनाओं को आहात कर रहा है इसके लिए प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जावाद  ने जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया है।इस बीच उन्होंने बड़े इमामबाड़े में मजलिस पढ़ने का भी ऐलान किया है।मौलाना ने उपमुख्यमंत्री तक भी इसकी शिकायत  पहुंचाई है।मौलाना ने अपने पत्र में लिखा है। कि एक समाचार पत्र में जिला अधिकारी का यह बयान कि वह इस पर विधि राय लेंगे कि बड़ा इमामबाड़ा धार्मिक स्थल है कि नहीं मौलाना ने पत्र में लिखा है। कि इमामबाड़े में ताजिए अलम और तमाम धार्मिक चीजें मौजूद है। इमामबाड़े के दाखिले गेट पर बड़ा बड़ा लिखा हुआ है कि यह धार्मिक स्थल है मौलाना ने कहा कि यह बयान हमारी भावनाओं को आहात करने वाला है। मौलाना कल्बे जवाद में जिला अधिकारी से इस बयान को वापस लेने की मांग भी की है। मौलाना का कहना है कि इमामबाड़े को टूरिस्ट के लिए खोला गया है तो फिर उसमें मजलिसे कराने में क्या परेशानी है।मौलाना कल्बे जवाद ने अपने पत्र में लिखा है कि वह कोरोना महामारी की वजह से चौथी गाइडलाइन के बावजूद भी नमाज नहीं पढ़ा रहे हैं।उसकी वजह यही है कि गाइड लाइन में 2 गज की दूरी लिखी हुई है जबकि नमाज में पास पास खड़ा हुआ जाता है।मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि मुस्तकिल हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा रहा है। परंतु हम सब लोग सब्र का मुज़ाहेरा कर रहे हैं। बताते चलें कि हुसैनाबाद ट्रस्ट अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने बनाया था जिसके बाद 1960 में एक स्कीम ऑफ़ मैनेजमेंट बनाकर ट्रस्ट की कमेटी बनाई गई उस वक्त उस कमेटी में लखनऊ के कमिश्नर चेयरमैन हुआ करते थे बाद में डिप्टी कमिश्नर चेयरमैन होने लगे लेकिन अभी पिछले 20 वर्षों में कमेटी का वजूद खत्म हो गया सिर्फ डिप्टी कमिश्नर चेयरमैन रह गए । मौजूदा वक्त में जिला मजिस्ट्रेट इसके चेयरमैन है। और उनके मातहत इसके प्रभारी और निरीक्षक बने हुए हैं। हुसैनाबाद ट्रस्ट की मैनेजमेंट कमेटी को बनाए जाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश पारित के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार में कमेटी के लिए जो नोटिफिकेशन हुआ था वह हाईकोर्ट मे पीआईएल दाखिल होने के बाद रोक दिया गया क्योंकि उस नोटिफिकेशन में विल(मंशा ए  वाकिफ )की खिलाफ वर्जी की गई थी।जो बादशाह मोहम्मद अली शाह ने ट्रस्ट बनाते वक्त लिखी थी।क्योंकि विल में अजीम उल्ला खा और रफीक उददौला बहादर के खानदान से कमेटी में लोग रखने को कहा गया है। जिसके बाद नवाब रफीक उददौला बहादर के खानदान के शाहिद अली खा ने पीआईएल करके अदालत से इसको रोकने की दरखास्त की उसके बाद सरकार ने नई स्कीम ऑफ मैनेजमेंट बनाने के लिए जस्टिस हैदर अब्बास को प्रशासक बना दिया गया था।अपील में यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट गया जहां विचाराधीन है। बताते चलें कि हुसैनाबाद ट्रस्ट वाह वह एक्ट के हिसाब से शिया वक्फ बोर्ड के अधीन आता है।

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