ज़ुल्जना इमाम हुसैन के घोड़े का मख़सूस नाम था,कर्बला की जंग में अपने किरदार और अपने अमल से मुनफ़रिद होकर अज़ाए हुसैन का जुज़ बन गया,हुसैनाबाद ट्रस्ट के ज़ुल्जनाह की ज़ियारत जुमेरात से हो सकेगी,मजलिसों में ज़ियारत के लिये आज से बुकिंग का आगाज़ हो गया है
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ ( जावेद ज़ैदी ) शाहन ए अवध के तीसरे ताजदार मोहम्मद अली शाह के बिना करदा हुसैनाबद एण्ड ट्रस्ट के ज़ुलजनाह की ज़ियारत जुमेरात से हो सकेगी। इस सिलसिले मे ट्रस्ट के सेक्रेट्री/सिटी मजिस्ट्रेट सुशील प्रताप सिंह ने इजाजत दे दी है। अय्यामे अज़ा के सवा दो महीने हुसैनाबाद ट्रस्ट की जानिब से मजलिसों में ज़ियारत के लिये ज़ुलजनाह फ़राहम कराया जाता था। जो इस बार कोविड -19 की एहतियाती तदाबीर की वजह से अब तक रोक दिया गया था। अनलाक – 4 की गाईड लाईन आने के बाद मज़हबी प्रोग्रामों मे सौ लोगों की इजाज़त मिलने के बाद भी ट्रस्ट की जानिब से ज़ुलजनाह की बुकिंग अभी तक बन्द थी । सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ ट्रस्ट इन्तिज़ामिया ने मजालसों के लिये ज़ुलजनाह भेजने की इजाज़त दे दी है। उम्मीद है कि इस साल मोहर्रम में पहली बार आज मुफतीगंज मे मजलिस में ज़ियारत के लिये ज़ुलजनाह जा सकेगा।ज़ुल्जना इमाम हुसैन के घोड़े का मख़सूस नाम था कर्बला की जंग में अपने किरदार और अपने अमल से मुनफ़रिद होकर अज़ाए हुसैन का जुज़ बन गया आज पूरी दुन्यां मे अज़ाए हुसैन मे निकले जाने वाले जुलूसों मे ज़ुल्जना को ज़रूर शामिल किया जाता है।किसी शायर ने तो यहाँ तक कह दिया कि मौला के रफ़ीक़ो में तेहत्तरवां यही था मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर के मारियो से लेकर नहो सलाम हर जगह ज़ुल्जना की अहिमयत और उसके किरदार को दर्शाया गया है। ज़ुल्जना इमाम हुसैन के घोड़े का मख़सूस नाम था जिसका असली नाम “मुर्तज़िज़” था । जो कर्बला मे इमाम हुसैन (अ.स.) की सवारी के तौर पर रहा और इमाम की शहादत की ख़बर ख्यामें हुसैनी में लाया था। बताया जाता है कि इस मुर्तज़िज़ नामी घोड़े को जब वह बच्चा था तब इमाम हुसेन (अ.स.) के नाना पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (स.अ.)ने उसे ख़रीदा था । तब इमाम हुसैन छोटे थे लेकिन उनका लगाव उससे बहुत ज़्यादा था। रसूल स.अ. की वफात के बाद इमाम हुसैन (अ.स) ने उसको अपने पास नाना की निशानी के तौर पर रखा और जब मदीने से कर्बला के लिये रुख़सत हुए तो अपने नाना की उस निशानी ( ज़ुलजनाह ) को अपने साथ ले गए । कर्बला मे वह इमाम (अ.स.)की सवारी रहा । इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत तक वह उनके साथ रहा, तब जुलजनाह की उम्र तकरीबन 55 साल थी। इसी वजह से ज़ुल्जनाह का बहुत ऐहतराम किया जाता है और अज़ादारी में इसका अहम मुक़ाम है। मजलिसों के बाद ज़ुलजनाह की ज़ियारत का ख़ास एहतिमाम किया जाता है। अज़ादार अपने अज़ाखानों मे ज़ुलजना की आमद बाएस बरकत मानते हैं। जिन अजाखानों में सालाना मजालिस के ज़ुलजना की ज़ियारत का एहतिमाम होता रहा है इस बार उन अज़ादारों में मायूसी पाई गई और अभी तक ट्रस्ट की ओर से इजाज़त न होने के सबब जिन अजाखानों में अभी सालाना मजलिस होना बाक़ी है और वहाँ जुलजनाह की ज़ियारत का एहतिमाम होता रहा है उनमे बेचैनी पाई जा रही है । लेकिन ट्रस्ट इन्तिज़ामिया की जानिब से अब इजाज़त मिलने के बाद उनको मायूसी का सामना नही करना पड़ेगा। हुसैनाबाद ट्रस्ट में इस वक़्त दो ज़ुहजनाह हैं जिनमें पहले वाले की उम्र तक़रीबन 22 साल है वह बीमारी और उम्र के आख़री दौर की वजह से कहीं भेजा नहीं जाता जब कि दूसरे की उम्र तकरीबन 7 साल है वह बुकिंग पर मजलिसों मे भेजा जाता है। जुलजनाह के इन्चार्ज रिज़वान हुसैन ने बताया कि उम्मीद है कि 13, सफ़र जुमेरात से उसकी बुकिंग शुरु हो जाएगी। सिर्फ़ ज़ुल्जनाह की बुकिंग 600 रुपये में और ज़ुलजनाह के साथ दीगर तबर्रुकात के साथ फ़ुल बुकिंग 1200 /- रुपये में होती है। यह बुकिंग 8 रबि अल अव्वल तक जारी रहेगी। 9, रबि अल अव्वल को ज़ुलजनाह के तमाम ज़ेवरात व दीगर तबर्रुकात को छोटे इमामबाड़े के तहवील ख़ाने में जमा कर दिया जाता है जो साल भर बाद पहली मोहर्रम को निकाला जाता है। बाक़ी दिनों यह ज़ुलजना छोटा इमामबाड़े के दुलदुल खाने में रहता है वहीं पहले वाला दुलदल भी मौजूद है।