जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता )काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल सिविल रिवीजन को जिला अदालत ने स्वीकार कर लिया है। 20 अक्टूबर को इस मामले में कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला रिजर्व रखा था। मामले में सुनवाई के लिए 12 नवंबर की तारीख तय की गई है।बताते चलें कि प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योर्तिलिंग भगवान विशेश्वरनाथ और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी मामले में खुद को प्रतिवादी के तौर पर शामिल करने के साथ ही इस पूरे मामले की सुनवाई के लखनऊ के ट्रिब्यूनल कोर्ट में कराने की मांग को लेकर वक्फ बोर्ड ने सिविल रिवीजन दाखिल किया था। विलम्ब से दाखिल इस याचिका को जिला जज की अदालत ने 3 हजार रुपये के जुर्माने के साथ पहले स्वीकार किया था और अब इस याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 12 नवंबर की तारीख दी है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील मोहम्मद तौफीक ने बताया कि बोर्ड की ये मांग है कि इस मामले में निचली अदालत के बजाय ट्रिब्यूनल कोर्ट में इसकी सुनवाई हो। काशी विश्वनाथ मंदिर पक्ष के लोगों का ये दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद ही पुराना काशी विश्वनाथ मंदिर है जो हिंदुओं को वापस मिलना चाहिए। इसके किए इसका पुरातात्विक सर्वेक्षण कराना बेहद जरूरी है जबकि मस्जिद पक्ष के लोग इस दावे को खारिज कर रहे हैं।

दिल्ली दंगे राजधानी में ‘विभाजन के बाद सबसे भयानक’: कोर्ट
जायज़ा डेली न्यूज़ दिल्ली (संवाददाता) दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को कहा कि इस साल फरवरी में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगे राष्ट्रीय राजधानी में ‘विभाजन के बाद सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे थे’। कोर्ट ने कहा कि यह ‘प्रमुख वैश्विक शक्ति’ बनने की हसरत रखने वाले राष्ट्र की अंतरात्मा में एक ‘घाव’ है।कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के 3 मामलों में जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणियां की। हुसैन पर सांप्रदायिक हिंसा के भड़काने के लिए कथित तौर पर अपने राजनीतिक दबदबे का दुरुपयोग करने का आरोप है।अदालत ने कहा, ‘यह सामान्य जानकारी है कि 24 फरवरी, 2020 के दिन उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई हिस्सें सांप्रदायिक उन्माद की चपेट में आ गए, जिसने विभाजन के दिनों में हुए नरसंहार की याद दिला दी। दंगे जल्द ही जंगल की आग की तरह राजधानी के नए भागों में फैल गए और अधिक से अधिक बेगुनाह लोग इसकी चपेट में आ गए।’अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा, ‘दिल्ली दंगे 2020 एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा रखने वाले राष्ट्र की अंतरात्मा पर एक घाव है और दिल्ली में हुए ये दंगे ‘विभाजन के बाद सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे थे।’ अदालत ने कहा कि इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर दंगे फैलाना ‘पूर्व-नियोजित साजिश’ के बिना संभव नहीं है। पहला मामला दयालपुर इलाके में हुए दंगों के दौरान हुसैन के घर की छत पर पेट्रोल बम के साथ 100 लोगों की कथित मौजूदगी और उन्हें दूसरे समुदाय से जुड़े लोगों पर बम फेंकने से जुड़ा है।दूसरा मामला क्षेत्र में एक दुकान में लूटपाट से जुड़ा है जिसकी वजह से दुकान के मालिक को करीब 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ जबकि तीसरा मामला एक दुकान में लूटपाट और जलाने से संबंधित है जिसमें दुकान के मालिक को 17 से 18 लाख रुपये का नुकसान हुआ।न्यायाधीश ने कहा कि यह मानने के लिए रिकॉर्ड में पर्याप्त सामग्री है कि हुसैन अपराध के स्थान पर मौजूद थे और एक विशेष समुदाय के दंगाइयों को उकसा रहे थे। न्यायाधीश ने कहा कि हुसैन के खिलाफ गंभीर प्रकृति के आरोप है। अदालत ने कहा कि तीनों मामलों में सरकारी गवाह उसी क्षेत्र के निवासी हैं और यदि उसे जमानत पर रिहा किया गया तो हुसैन की तरफ से इन गवाहों को धमकी देने या डराने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के के मेनन ने दावा किया था कि कानून की मशीनरी का दुरुपयोग करके उसे (ताहिर हुसैन) परेशान करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ पुलिस और उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उसे इस मामले में झूठा फंसाया।

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