जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (ज़हीर इक़बाल) विश्व विख्यात शिया धर्मगुरु औरऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक़ का मंगलवार देर रात लखनऊ में निधन हो गया। कैंसर, गंभीर निमोनिया और संक्रमण से पीड़ित मौलाना सादिक़ करीब डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे। हकीमे उम्मत के लक़ब से नवाज़े गए मौलाना डाक्टर कल्बे सादिक़ ने लखनऊ स्थित एरा अस्पताल में रात क़रीब 10 बजे अंतिम सांस ली। उन्हें पिछले मंगलवार को तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन उनकी हालत बिगड़ती ही चली गई। तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।

मौलाना सादिक़ के बेटे कल्बे सिब्तैन नूरी ने बताया की मौलाना कल्बे सादिक़ साहब की नमाज़ ए जनाज़ा सुबह 11:30 बजे यूनिटी कालेज लखनऊ के ग्राउंड मे पढ़ाई जाएगी,और 2 बजे इमामबाड़ा गुफ़रानमाब चौक में तदफीन होगी।सुबह नौ बजे उनका जनाज़ा यूनिटी कालेज लखनऊ मे लाया गया है।

जहाँ लोग उनका आखरी दिदार कर रहे हैं।लखनऊ ही नहीं बल्कि दुनिया भर में शिया धर्मगुरु के रूप में एक अलग पहचान रखने वाले मौलाना कल्बे सादिक़ पूरी ज़िंदगी शिक्षा को बढ़ावा देने और मुस्लिम समाज से रूढ़िवादी परंपराओं के ख़ात्मे के लिए कोशिश करते रहे।साल 1939 में लखनऊ में जन्मे मौलाना कल्बे सादिक़ की प्रारंभिक शिक्षा मदरसे में हुई थी। लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उच्च शिक्षा उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हासिल की. अलीगढ़ से ही उन्होंने एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की साल 1982 में मौलाना कल्बे सादिक़ ने तौहीद-उल मुसलमीन नाम से एक ट्रस्ट स्थापित किया और यूनिटी कॉलेज की नींव रखी।उन्होंने एरा अस्पताल मेडिकल कॉलेज क़ाएम करने मे अहम् किरदार अदा किया समाज को शिक्षित करने में उन्होंने बड़ी मेहनत की. शिक्षा और शिया-सुन्नी एकता पर मौलाना साहब ने बहुत काम किया था। वो पहले मौलाना थे जिन्होंने शिया-सुन्नी लोगों को एक साथ नमाज़ पढ़ाई”धर्मशास्त्र के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा भी हासिल की थी

और उसमें पारंगत थे, जिसकी वजह से दुनिया भर में उन्हें लोग सुनते थे।मौलाना साहब न सिर्फ़ मुस्लिम समाज में प्रगतिशीलता के पक्षधर थे, बल्कि इसके लिए उन्होंने काफ़ी काम भी किया महिलाओं को नमाज़ पढ़ाने, तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ अभियान चलाने से लेकर फैमली प्लानिंग के इस्तेमाल तक के लिए उन्होंने लोगों को प्रेरित किया।वैज्ञानिक युग में मौलाना कल्बे सादिक़ ऐन मौक़े पर चांद देख कर एलान करने की जगह रमज़ान की शुरुआत में ही ईद और बकरीद की तारीख़ों का एलान कर देते थे।

हालांकि अपने इन विचारों के चलते कई बार उन्हें अपने समाज में ही विरोध का भी सामना करना पड़ा।वह वक़्त के बहुत बाबंद और उसूलों पर चलने वाले शख्स थे।मौलाना कल्बे सादिक़ न सिर्फ़ शिया-सुन्नी एकता के लिए लखनऊ में मशहूर थे बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी हमेशा कोशिश करते थे।

वे मंगलवार को कई बार भंडारे का आयोजन भी करते थे।

संघ प्रमुख शंकाचार्यो से मिल कर उन्होंने बाबरी मस्जिद का मसला बातचीत से हल करने की कोशिश भी की थी।मौलाना कल्बे सादिक़ ने पिछले साल आए नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए का भी विरोध किया था. लखनऊ के घंटाघर में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रही महिलाओं का उत्साह बढ़ाते हुए उन्होंने कहा था कि यह काला क़ानून है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का निधन
जायज़ा डेली न्यूज़ दिल्ली (संवाददाता ) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का निधन हो गया है। उनके बेटे फ़ैसल पटेल ने ट्विटर पर बताया कि बुधवार सुबह 3.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.71 वर्षीय अहमद पटेल क़रीब एक महीने पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे। उनका निधन दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ। फ़ैसल पटेल ने यह भी लिखा कि, “अपने सभी शुभचिंतकों से अनुरोध करता हूं कि इस वक्त कोरोना वायरस के नियमों का कड़ाई से पालन करें और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर दृढ़ रहें और किसी भी सामूहिक आयोजन में जाने से बचें”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल के निधन पर शोक जताते हुए लिखा है कि ‘अपने तेज़ दिमाग़ के लिए जाने जाने वाले पटेल की कांग्रेस को मज़बूत बनाने में भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा।अहमद पटेल कांग्रेस में हमेशा संगठन के आदमी माने गए.

वे पहली बार चर्चा में तब आए थे जब 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था, तब इन तीनों को अनौपचारिक चर्चाओं में ‘अमर-अकबर-एंथनी’ गैंग कहा जाता था।अहमद पटेल के दोस्त, विरोधी और सहकर्मी उन्हें अहमद भाई कह कर पुकारते रहे, लेकिन वे हमेशा सत्ता और प्रचार से खुद को दूर रखना ही पसंद करते थे।सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संभवतः प्रणब मुखर्जी के बाद यूपीए के 2004 से 2014 के शासनकाल में अहमद पटेल सबसे ताकतवर नेता थे।2014 के बाद से, जब कांग्रेस ताश के महल की तरह दिखने लगी है तब भी अहमद पटेल मज़बूती से खड़े रहे और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और धुर विरोधी शिवसेना को भी साथ लाने में कामयाब रहे।अहमद पटेल से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं।और ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, अगर कहा जाए कि 2014 के बाद गांधी परिवार की तुलना में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सद्भाव क़ायम रखने में अहमद पटेल का प्रभाव ज़्यादा दिखा।लेकिन हर आदमी की अपनी खामियां या कहें सीमाएं होती हैं. अहमद पटेल हमेशा सतर्क रहे और किसी भी मुद्दे पर निर्णायक रुख लेने से बचते रहे।

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