जायज़ा डेली न्यूज़, नजफ, रॉयटर्स। अपने ऐतिहासिक इराक दौरे में शनिवार को पोप फ्रांसिस ने शिया इस्लाम में सबसे वरिष्ठ मौलवियों में से एक ग्रैंड अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी (Ayatollah Ali al-Sistani) से मुलाकात की। कैथलिक चर्च के प्रमुख पोप फ़्रांसिस और शिया मुसलमानों के सबसे ताक़तवर चेहरों में से एक धर्मगुरु अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी के बीच इराक़ शनिवार को मुलाक़ात हुई।दूसरे धर्मों के साथ बातचीत और संवाद के लिए पहल करने वाले नेता के तौर पर मशहूर पोप फ़्रांसिस की सिस्तानी के साथ मुलाक़ात को इराक के उनके दौरे की सबसे महत्वपूर्ण घटना बताया जा रहा है।

न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़, सिस्तानी के दफ़्तर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस मुलाक़ात में सिस्तानी ने कहा कि इराक़ में रह रहे ईसाई नागरिकों को अपने पूर्ण संवैधानिक अधिकारों के साथ बाकी इराक़ियों की तरह शांति और सुरक्षा के साथ रहना चाहिए। इराक़ में ईसाइयों की आबादी हिंसा का शिकार रही है और इसकी संख्या में लगातार गिरावट आई है।दूसरी ओर, सिस्तानी को एक उदारवादी मुसलमान नेता माना जाता है।

दोनों मज़हबी पेशवाओ के बीच क़रीब 50 मिनट तक बातचीत हुई. यह मुलाक़ात सीस्तानी के नज़फ स्थित घर पर हुई है। नज़फ को शिया मुसलमानों का पवित्र शहर माना जाता है। सिस्तानी दुनियाभर के लाखों शिया मुसलमानों के धार्मिक नेता हैं। कैथलिक चर्च के 84 साल के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ़्रांसिस ने कहा था कि वे मानते हैं कि यह दौरा करना उनका कर्तव्य है. इस यात्रा के दौरान पोप चार दिनों में इराक़ में कई महत्वपूर्ण जगहों पर जाएंगे। वहीं शिया धर्मगुरु अल-सिस्तानी 90 साल के हैं।दशकों तक इराक में चले युद्ध के दौरान ईसाई समुदाय के लोगों की संख्या में आई कमी के बीच पोप फ्रांसिस शुक्रवार को बगदाद पहुंचे।रविवार को,वे आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट के पूर्व गढ़ मोसुल का दौरा करेंगे और चर्च स्क्वायर में मताधिकार की प्रार्थना करेंगे। बता दें कि पोप की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ 10,000 इराकी सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है।

कोविड-19 महामारी के बीच हो रही पोप की इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए महीनों से तैयारियां चल रही थी। बता दें कि यह पोप की पहली इराक यात्रा है। पोप ने तुर्की, जॉर्डन, मिस्र, बांग्लादेश,अजरबेजान, संयुक्त अरब अमीरात और फलस्तीनी प्रदेशों का भी दौरा किया है।

पोप ईसाइयों से आग्रह करेंगे कि वे वर्षों के युद्ध और उत्पीड़न के बाद देश के पुनर्निर्माण में मदद करें। पोप ने उड़ान के दौरान मास्क पहन रखा था और जब वह सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे, उस समय भी उन्होंने मास्क पहन रखा था। पोप शांति और सह-अस्तित्व का संदेश लेकर इराक आए हैं ताकि देश में रचे-बसे ईसाई अल्पसंख्यक को राहत मिल सके। 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हुए हमले के बाद हुए विभिन्न संघर्षों के दौरान बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक देश छोड़कर भाग गए। पोप फ्रांसिस (Pope Francis) शुक्रवार को ऐतिहासिक इराक (Iraq) दौरे पर यहां पहुंचे।

उनका ये दौरा ऐसे समय हुआ है जब इराक में दशकों तक चले युद्ध के दौरान ईसाई समुदाय (Christian Community) के लोगों की संख्या तेजी से घटी है। पोप शांति और सह-अस्तित्व का संदेश लेकर इराक आए हैं ताकि देश में रचे-बसे ईसाई अल्पसंख्यक को राहत मिल सके. 2003 में अमेरिका (America) के नेतृत्व में इराक पर हुए हमले के बाद हुए विभिन्न संघर्षों के दौरान बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक देश छोड़कर भाग गए। इराक की राजधानी बगदाद (Bhagdad) से पोप फ्रांसिस की यात्रा शुरू हुई है। जहां वह विभिन्न कार्यक्रमों को

संबोधित करेंगे। इसके अलावा वह अन्य विभिन्न धार्मिक शहरों में कई धार्मिक कार्यक्रमों में भी भाग लेंगे। उनका विमान स्थानीय समयानुसार दोपहर में करीब दो बजे यहां उतारा। विमान पर वेटिकन (Vatican) और इराक के झंडे लगे हुए थे। उनके स्वागत के लिए भव्य तैयारियां की गयी थीं और उनकी एक झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में लोग हवाई अड्डा के पास एकत्र थे। बता दें कि उन्होंने नजफ में शीर्ष शिया नेता अली अल-सिस्तानी (Ali al-Sistani) से मुलाकात की है।

पोप फ्रांसिस के इराक पहुंचने से देश में रहने वाले ईसाई समुदाय खासा उत्साहित है। बगदाद में पोप के पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं. इन पोस्टरों में लिखा गया है, ‘हम सब भाई हैं’। राजधानी में कई सड़कों पर इराक और वेटिकन के झंड़ों को लगाया गया है।बताते चले की इराक मे इस समय शिया सरकार परन्तु सुन्नी सद्दाम हुसैन के 

शासन से सुन्नी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस तक ईसाई और शिया समुदाय पर मुसलसल हमले हुए और उनकी जान मॉल का नुकसान हुआ इराक की सरकार पोप फ्रांसिस के दौरे से दिखाना चाहती है कि इसने हाल के सालों में देश को सुरक्षित बनाया हैहाल के सालों में इस युद्धग्रस्त मुल्क में आतंकी हमलों में गिरावट हुई है। पोप फ्रांसिस और वेटिकन से उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल की सुरक्षा इराकी सुरक्षाबल कर रहे हैं। पोप फ्रांसिस इराक की अपनी इस यात्रा से यहां रहने वाले ईसाई समुदाय का ध्यान दुनिया की ओर करना चाहते हैं. इराक में रहने वाले ईसाई समुदाय ने इस्लामिक स्टेट के खूंखार शासन के दौरान यहां से बड़ी संख्या में पलायन किया.

एक समय में इराक में ईसाई समुदाय एक बड़ी संख्या वाला अल्पसंख्यक समुदाय हुआ करता था. लेकिन 2003 में अमेरिका के यहां घुसपैठ करने और फिर इस्लामिक स्टेट के आतंकियों द्वारा ढाए गए जुल्मों के चलते इनकी संख्या खासा कम हो गई. IS के आतंकियों ने पारंपरिक ईसाई कस्बों को पूरी तरह तबाह कर दिया।एक तरफ कोरोना वायरस का खतरा तो दूसरी तरफ हर दूसरे दिन कहीं ना कहीं रॉकेट हमले इन सबके बीच ईसाई धर्म के सर्वोच्च गुरु पोप फ्रांसिस इराक दौरे पर हैं। कोरोना संक्रमण फैलने के बाद पहली बार ईसाई धर्म गुरु पोप फ्रांसिस किसी देश के दौरे पर निकले हैं। लेकिन पोप फ्रांसिस के दौरे के साथ सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सुरक्षा में खतरे को देखते हुए भी पोप फ्रांसिस इराक दौरे पर क्यों आए हैं। ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस उन ईसाइयों से मुलाकात कर सकते हैं जो धार्मिक आधार पर सताए गये हैं। वहीं कई धार्मिक और पॉलिटिकल नेताओं से भी पोप फ्रांसिस मुलाकात करेंगे। जिसमें वो पूरी दुनिया के लिए शांति का आह्वान कर सकते हैं। इराक के लोगों के लिए जारी किए गये वीडियो संदेश में उन्होंने कहा है कि वो एक तीर्थयात्री के तौर पर इराक का यात्रा कर रहे हैं और आतंकवाद और वर्षों की जंग के बाद सुलह और खुदा से क्षमा की खातिर आ रहा हूं। पोप फ्रांसिस के साथ 75 जर्नलिस्ट भी इराक की यात्रा पर आ रहे हैं। इराक में साल 2003 में करीब 15 लाख से ज्यादा ईसाई समुदाय के लोग रहते थे मगर धीरे धीरे उनकी संख्या कम होती चली गई। इस वक्त इराक में महज 3 लाख ईसाई ही रहते हैं। वहीं, इराक में बड़े पैमाने पर चर्च भी ध्वस्त किए गये है। रिपोर्ट के मुताबिक इराक में 58 से ज्यादा चर्च को इस्लामिक कट्टरपंथियों ने गिरा दिया, वहीं हजार से ज्यादा ईशाइयों का इराक में कत्ल कर दिया गया। अलकायदा आतंकियों ने बड़े पैमाने पर इराक में चर्चों को गिराए तो कई पादरियों की अपहरण कर उनकी हत्या तक कर दी। ऐसे में माना जा रहा है कि सताए गये ईसाइयों के जख्म पर पोप फ्रांसिस मरहम रखने का काम करेंगे।

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