जायज़ा डैली न्यूज़ (संवाददाता) उत्तर प्रदेश में अब सार्वजनिक कार्यक्रम व जुलूस बिना पूर्व अनुमति के नहीं होंगे। वहीं, सरकार ने स्पष्ट किया है कि पर्व व त्योहारों पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। उधर राजधानी लखनऊ मे पूर्व मे दी गई अनुमतियाँ तत्काल प्रभाव से रद करते हुए राजधानी लखनऊ मे आज पुलिस कमीश्नर और जिला अधिकारी ने आदेश जारी करते हुए कहा है की अग्रिम आदेश तक समस्त प्रकार की रेन डांस पार्टीयां नृत्य आयोजन ,पार्टियां वाह जुलूस और कार्यक्रम जिसमे जन-समुदाय जमा हों प्रतिबंधित हैं साथ ही पूर्व मे जो अनुमतियाँ दी गई है वह भी रद कर दी गई हैं। उधर शासन ने बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लोगों को जागरूक करने के लिए कहा गया है।यह भी निर्देश दिए गए हैं कि बिना स्थानीय प्रशासन की पूर्वानुमति के कोई जुलूस तथा कार्यक्रम या सार्वजनिक समारोह आयोजित न किए जाएं। इन आयोजनों में हाई रिस्क कैटेगरी जैसे 10 वर्ष की उम्र से कम के बच्चों, 60 साल से अधिक के वृद्ध और एक से अधिक गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों को इनमें शामिल होने से बचाया जाए। अनुमति के पूर्व यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे आयोजनों में कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन हो।वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को सार्वजनिक स्थानों पर सामाजिक दूरी और मास्क पहनने के नियम को कड़ाई से लागू करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन,एयरपोर्ट पर इंफ्रारेड थर्मामीटर,पल्स ऑक्सीमीटर और रैपिड एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था अनिवार्य रूप से रहे। कोविड-19 की जांच और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग प्रभावी ढंग से की जाए। वे अपने आवास पर उच्चस्तरीय बैठक में कोविड-19 नियंत्रण व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे।

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यूपी डीजीपी का आदेश,30 मार्च तक पुलिसकर्मियों को नहीं मिलेगी छुट्टी
जायज़ा डेली लखनऊ (संवाददाता) यूपी डीजीपी एचसी अवस्थी ने सभी पुलिस कर्मियों की छुट्टियां 25 से 30 मार्च तक के लिए रद्द कर दी हैं। यह निर्णय होली और शब-ए-बारात पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए मद्देनजर लिया गया। डीजीपी ने अपने आदेश में कहा कि होली पर किसी तरह का कोई हुड़दंग न हो और कोरोना गाइडलाइंस का पूरी तरह पालन किया जाना सुनिश्चित किया जाए। होली और शब-ए-बारात को देखते हुए पुलिस ने सतर्कता बढ़ानी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में ज्वाइन्ट पुलिस कमिश्नर नवीन अरोरा ने अपील की है कि बिना अनुमति के इन मौके पर कोई जुलूस न निकाले। अनुमति मिलने पर कोविड नियमों का पालन करते हुए ही जुलूस निकलने दिया जाएगा। इसके अलावा अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी जेसीपी कानून व्यवस्था ने दी है। जेसीपी नवीन अरोरा ने कहा कि होली पर दूसरे सम्प्रदाय के लोगों को जबरदस्ती रंग न लगाया जाए। ऐसा करने वाले पर सख्ती की जाएगी। उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि जुलूस का जो मार्ग तय होगा, उसका पालन किया जाए। इसके अलावा होलिका दहन के समय भी कोई विवाद न होने दिया जाये। इसके लिये सभी थानेदारों को भी कई निर्देश दिये गये हैं। उन्होंने यह भी कहा कि होलिका दहन के लिये हरे पेड़ काटने पर भी सख्त कार्रवाई की जायेगी। जेसीपी ने सभी थानेदारों से होलिका दहन के स्थानों पर भ्रमण कर विवाद की स्थिति देखने को कहा है। यह भी ध्यान रखना है कि किसी नई जगह पर होलिका दहन करने को लेकर कोई विवाद तो नहीं है। साथ ही धारा 144 का सख्ती से पालन कराने को भी थानेदारों से कहा गया है।

बीजेपी विधायक डॉ.नीरज बोरा हुए कोरोना पॉजिटिव
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता) लखनऊ उत्तर क्षेत्र से भाजपा विधायक डॉ. नीरज बोरा कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं, उन्होंने इस बात की सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से दी है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान नीरज बोरा पहले ऐसे वीआईपी हैं जिनको कोरोना संक्रमण हुआ है। नीरज बोरा खुद भी डॉक्टर हैं। उनका सीतापुर रोड पर सेवा अस्पताल नाम से बड़ा चिकित्सा केन्द्र है।आपको बता दें कि यूपी में भी कोरोना बढ़ रहा है। सोमवार को एक दिन में कुल एक लाख 35 हजार 257 सैम्पल की जांच की गई जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक जांचे आरटीपीसीआर के माध्यम से की गई हैं। प्रदेश में अब तक कुल तीन करोड़ 37 लाख 15 हजार 631 सैम्पल की जांच की गयी है। पिछले 24 घंटे में कोरोना से संक्रमित 542 नये मामले आए हैं। उन्होने बताया कि प्रदेश में 3,396 कोरोना के एक्टिव मामले हैं। प्रदेश में कोविड-19 से ठीक होने का प्रतिशत 98 है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में अब तक 5,95,920 लोग कोविड-19 से ठीक होकर डिस्चार्ज हो चुके हैं। श्री प्रसाद ने बताया कि प्रदेश के सभी मेडिकल कालेज, जिला चिकित्सालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सप्ताह के छह दिन सोमवार से शनिवार एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार तक कोविड वैक्सीनेशन किया जा रहा है।

एलडीए में लापरवाही पर बड़ी कार्रवाई, आठ कर्मचारी सेवा से बर्खास्त
जायज़ा डैली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता)एलडीए ने लंबे समय से गायब अपने 8 कर्मचारियों को मंगलवार को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इनमें से कुछ 16 वर्ष से गायब थे तो कुछ 2 साल से।एलडीए के कर्मचारी सालों से प्राधिकरण नहीं आ रहे थे। लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। कार्यालय न आने की वजह से केवल उनका वेतन रोका गया था। नौकरी से नहीं हटाया गया था। एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने मंगलवार को इन 8 कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। बताया जा रहा कि इनमें से कई कर्मचारी पहले से ही दूसरी जगह नौकरी कर रहे थे। लेकिन यहां उनकी सेवाएं समाप्त नहीं की गई थी। अब यह एलडीए से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं।अखिलेश चैन मैन नवंबर 2004,ओम प्रकाश पाल माली नवंबर 2011,सरोज कुमार माली नवंबर 2019,राम लखन अनुचर फरवरी 2007,राज प्रताप सिंह अनुचर सितंबर 2019,आद्या प्रसाद मेट मार्च 2019,रवींद्रनाथ मुखर्जी विद्युत कार अक्टूबर 2011,मेवालाल सफाई कर्मचारी फरवरी 2005, उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने बताया, लंबे समय से गायब चल रहे 8 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है। यह सभी काफी समय से गायब थे। लेकिन पूर्व में कार्रवाई नहीं की गई। मंगलवार को इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई।

आईपीएस अमिताभ ठाकुर सहित यूपी के तीन आईपीएस अफसरों को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति
जायज़ा डेली लखनऊ\ दिल्ली (संवाददाता)  अपने पद पर रहते हुए गंभीर अनियमितता पाए जाने के आरोप में यूपी के आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर सहित तीन आईपीएस अफसरों को मंगलवार को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। तीनों ही अफसरों को सरकारी सेवा के लिए अनुपयुक्त पाया गया है। यह फैसला गृह मंत्रालय द्वारा स्क्रीनिंग के बाद लिया गया। बता दें कि आईपीएस अमिताभ ठाकुर ( आईजी रूल्स एवं मैनुअल) के खिलाफ कई तरह की जांच चल रही थी।सेवानिवृत्त होने वाले अन्य अफसरों में राजेश कृष्ण (सेना नायक 10 बटालियन बाराबंकी) व  राकेश शंकर ( डीआईजी स्थापना) भी हैं। राजेश कृष्ण का आज़मगढ़ में पुलिस भर्ती में घोटाले में नाम आया था।वहीं, देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में आईपीएस राकेश शंकर की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी।इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अमिताभ ठाकुर ने ट्वीट किया है कि मुझे अभी-अभी वीआरएस (लोकहित में सेवानिवृति) आदेश प्राप्त हुआ. सरकार को अब मेरी सेवाएँ नहीं चाहिये. जय हिन्द !इसके अलावा उन्होंने ट्वीट कर आदेश का लेटर भी जारी किया है

सियासत: बंगाल में सीएए चुनावी मुद्दा, लेकिन असम में जिक्र तक नहीं, भाजपा का रुख अलग क्यों?
जायज़ा डेली न्यूज़ दिल्ली (संवाददाता) देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल बेहिसाब वादे करके मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच भाजपा के चुनावी मुद्दे नागरिकता संशोधन एक्ट यानी सीएए पर लोगों की खास नजरें बनी हुई हैं, लेकिन पार्टी इसे पश्चिम बंगाल में जोर-शोर से उठा रही है, जबकि असम में इसका जिक्र तक नहीं किया गया। यही हाल नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजनशिप यानी एनआरसी का भी है। गौर करने वाली बात यह है कि बंगाल में पार्टी सत्ता हासिल करने की कोशिशों में लगी हुई है, जबकि असम में उसे अपनी राजनीतिक गद्दी बचानी है। ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि दोनों राज्यों में एक जैसे मुद्दों पर अलग-अलग क्यों हैं भाजपा का रुख? बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार (21 मार्च) को पश्चिम बंगाल में भाजपा का संकल्प पत्र जारी किया। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार (23 मार्च) को असम में संकल्प पत्र का एलान किया। बंगाल में भाजपा ने जोर-शोर से सीएए लागू करने का मसला उठाया, लेकिन असम में इसका जिक्र तक नहीं किया। नड्डा ने असम में एनआरसी लागू करने की बात कही, लेकिन वह भी सही तरीके से। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में संकल्प पत्र जारी करते वक्त भाजपा ने जोर-शोर से नागरिकता संशोधन एक्ट का जिक्र किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीएए को बंगाल में सरकार बनते ही पहली कैबिनेट से पास कराया जाएगा। सरकार बनने के बाद घुसपैठियों के लिए बंगाल के दरवाजे बंद कर दिए जाएंगे। असम में सीएए के मसले पर जेपी नड्डा ने कहा कि भाजपा असम से घुसपैठियों को बाहर निकालेगी। हालांकि, इसके लिए सीएए का जिक्र नहीं किया गया। नड्डा ने कहा कि असम के संरक्षण के लिए सही एनआरसी पर काम किया जाएगा, जिससे वास्तविक भारतीयों की रक्षा हो सके। साथ ही, घुसपैठियों को बाहर निकाला जा सके। हालांकि, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए दिशा-निर्देशों का पालन किया जाएगा। बता दें कि भाजपा बंगाल में सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में वह हिंदुत्व के साथ-साथ सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दे उठा रही है। इसके अलावा सरकारी नौकरी में महिलाओं को आरक्षण, किसान सम्मान निधि लागू करने, मछुआरों को आर्थिक मदद जैसे मसलों पर भी आक्रामक हो रही है। उधर, असम में भाजपा की सरकार है, जिसे बचाने के लिए पार्टी हर कोशिश रही है। दरअसल, सीएए के मुद्दे पर 2019 के दौरान असम में काफी बवाल हुआ था। माना जा रहा है कि इसी वजह से भाजपा ने इस मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

आम आदमी पार्टी की अपील: राज्यसभा में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन विधेयक का विरोध करें विपक्षी पार्टियां
जायज़ा डेली नई दिल्ली (संवाददाता)राष्ट्रीय राजधानी मे आप पार्टी के बढ़ती लोकप्रियता से भयभीत बीजेपी ने सत्ता का दुरूपयोग करते हुए आप पार्टी के पर कतरना शुरू कर दिए हैं कहाँ तो यह माँग होती आई है की दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021 को लोकसभा से मंजूरी दी है। इस विधेयक का शुरू से ही विरोध कर रही आम आदमी पार्टी ने अब इसके विरोध के लिए अन्य पार्टियों से भी अपील की है। आम आदमी पार्टी ने विपक्षी दलों और अन्य गैर एनडीए पार्टियों से राज्यसभा में इसका विरोध करने की अपील की है। मालूम हो कि विधेयक को लोकसभा में मंजूरी मिलने के बाद से ही सभी की आंखें राज्यसभा पर टिकी हुई हैं। अगर राज्य सभा से बिल पास होने के बाद कानून में तब्दील होता है तो दिल्ली सरकार व केंद्र की बीच नए सिरे से सियासी जंग की जमीन तैयार हो जाएगी। पहले के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि दिल्ली जुड़े मसलों पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल में विवाद आम होगा। संभव है कि आम आदमी पार्टी व उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल को एक बार फिर सड़क से मोर्चा संभालना पड़े। लोकसभा से बिल पास होने के बाद मुख्यमंत्री ने इस तरफ इशारा भी किया। इस पर प्रतिक्रया जाहिर करते हुए अरविंद केजरीवाल ने ट्विट किया कि भाजपा ने दिल्ली की जनता को धोखा दिया है। जीतने वालों से शक्तियां छीनकर हारने वालों को दे दिया है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने विधेयक को लोकतंत्र की हत्या सरीखा बताया है।दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव आम था। यहां तक कि मुख्यमंत्री को अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ राजनिवास में धरना देना पड़ा था। वहीं, आए दिन अलग-अलग मसलों पर उपराज्यपाल पर काम रोकने का आरोप लगाते हुए आप विधायक राजनिवास पर प्रदर्शन करते थे। अदालत का फैसला आने के बाद इस तरह का गतिरोध दूर हो गया था।जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के काम में बाधा न बनें। सुप्रीम अदालत के मुताबिक, भूमि, कानून-व्यवस्था, पुलिस को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास अन्य सभी विषयों पर कानून बनाने और उसे लागू करने का अधिकार है।

 

 

 

 

 

 

 

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