ट्रंप के बाद नेतन्याहू का ज़वाल, इसराइल के इतिहास में पहली बार इस्लामिक पार्टी के समर्थन से बनेगी सरकार,यूनाइटेड अरब लिस्ट यानी रा’म के नेता मंसूर अब्बास किंगमेकर बनकर उभरे

जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) इसराइल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक इस्लामिक पार्टी और दक्षिणपंथी पार्टी सरकार बनाने के लिए साथ आए हैं।इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बाहर करने के मकसद ने बिल्कुल अलग विचारधाराओं वाली दो पार्टियों को साथ लाकर खड़ा कर दिया है।इसराइल की अरब आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी यूनाइटेड अरब लिस्ट यानी रा’म के नेता मंसूर अब्बास ने बुधवार रात को दक्षिणपंथी नेफ्टाली बेनेट को अपना समर्थन देने का ऐलान किया। नेतन्याहू को संसद में बुधवार आधी रात तक बहुमत साबित करना था लेकिन उसके पहले येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड ने राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन को सूचित किया,कि वो नई सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। येर लेपिड ने राष्ट्रपति से कहा है कि इस सरकार में प्रधानमंत्री यामिना पार्टी के नेफ्टाली बेनेट होंगे।समझौते के अनुसार, बेनेट सितंबर 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे. उसके बाद लेपिड प्रधानमंत्री बनेंगे और नवंबर 2025 तक रहेंगे. इस समझौते पर रा’म (Ra’am)पार्टी के नेता मंसूर अब्बास ने भी हस्ताक्षर किए. यह पहली बार होने जा रहा है जब इस्लामिक पार्टी सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है।मंसूर अब्बास की रा’म पार्टी को चुनाव में चार सीटें हासिल हुई थीं और वह सबसे आखिरी पायदान पर थी. इसके बावजूद, सरकार बनाने में उनकी भूमिका अहम है। 120 सदस्यीय इसराइली संसद में महज 61 सदस्यों के समर्थन से बनने वाली इस सरकार के लिए अपने कार्यकाल का कोई भी दिन सहज नहीं होने जा रहा है। ग़ौरतलब है कि सरकार में शामिल अरब पार्टी, रा’म (Ra’am), बाहर से सरकार का समर्थन नहीं कर रही बल्कि उसका हिस्सा है।राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन को सरकार गठन को लेकर पर्याप्त समर्थन जुटा लेने की सूचना देने के कुछ घंटे पहले एक ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा था, “आज रात और विश्वासमत होने तक के दिनों में चाहे जो कुछ भी हो, यह एक ऐतिहासिक तस्वीर है. एक अरब-इसरायली पार्टी के नेता और एक यहूदी-राष्ट्रवादी पार्टी के नेता एक साथ सरकार में शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। उन्होंने ट्वीट के साथ रा’म पार्टी के प्रमुख मंसूर अब्बास की एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें वो दक्षिणपंथी यमिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट और सेंट्रिस्ट यश अतीद के याइर लापीद के साथ गठबंधन समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए देखे जा सकते हैं। यह तस्वीर गुरुवार को देश में चर्चा का विषय बन गई और सभी मीडिया आउटलेट इस “ऐतिहासिक क्षण” के बारे में बात करने लगे. इससे पहले किसी अरब नेता या पार्टी के इसराइली सरकार में शामिल होने की कल्पना किसी ने नहीं की थी। इस अहम उपलब्धि से इसराइल में एक आशावादी रुख़ नज़र आ रहा है। सड़कों और मीडिया में भी एक अनदेखा उत्साह दिख रहा है। लोगों को आभास है कि यह एक आसान प्रयोग नहीं है मगर आबादी का बड़ा हिस्सा इसके प्रति अनुकूल रवैया दिखाता नज़र आ रहा है. साथ ही साथ इस नए डेवलपमेंट ने कई सवाल भी खड़े किये हैं। जिन बातों पर ख़ासकर चर्चा हो रही है, वो है-आख़िर यह कौन अरब नेता हैं जो लीक से हटकर इतना बड़ा फ़ैसला कर रहे हैं. क्या यह सरकार लंबे समय तक टिक पाएगी? इस गठबंधन का इसराइल के अंदर, क्षेत्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या असर होगा? यूनाइटेड अरब लिस्ट या रा’म पार्टी के प्रमुख डॉक्टर मंसूर अब्बास पेशे से दंत चिकित्सक हैं। 47 वर्षीय अब्बास का जन्म इसराइल के उत्तरी हिस्से में हुआ था। वो युवावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हैं और हिब्रू विश्वविद्यालय में अरब छात्र समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं. वर्तमान में अब्बास हाइफा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री के लिए अध्ययनरत भी हैं।डॉक्टर अब्बास इस्लामी आंदोलन की दक्षिणी शाखा के उपाध्यक्ष भी हैं। हालांकि वो इसराइल के उत्तरी इलाक़े के रहने वाले हैं मगर दक्षिणी इलाक़ों में उनका अच्छा बोलबाला है।
उन्हें इसराइल के दक्षिणी इलाक़ों में ख़ासा समर्थन मिला, जिसके बदौलत उनकी पार्टी सारी अटकलों को झुठलाते हुए संसद में स्थान बना पाई. इसराइली चुनावी नियमों के मुताबिक़ किसी भी पार्टी को संसद में शामिल होने के लिए न्यूनतम 3.25 प्रतिशत वोट पाना होता है। किसी समय इस नियम को बनाए जाने की वजह अरब पार्टियों को संसद से दूर करना था मगर इसकी वजह से उनमें एकता हुई और पिछले कुछ चुनावों में सभी अरब पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा है।हालाँकि अब्बास का बाक़ी अरब पार्टियों से सैद्धांतिक मतभेद नज़र आया और उन्होंने उनका साथ छोड़ने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले को कई लोगों ने आत्मघाती बताया और शुरुआती दौर में ऐसा लगा कि वो न्यूनतम वोट प्रतिशत की कसौटी पर भी सफल नहीं हो सकेंगे।
मंसूर अब्बास को क़रीब से जानने वाले बताते है कि सौम्य स्वभाव के अब्बास सैद्धांतिक मूल्यों पर अडिग रहते हैं चाहे उसके लिए उन्हें कितनी भी बड़ी क़ीमत क्यों न चुकानी पड़े।आश्चर्य की बात यह है कि जिस बात को लेकर उनका बाक़ी दिग्गज अरब नेताओं से मतभेद था, कोई उम्मीद नहीं कर सकता था कि उस पर उन्हें सफलता मिलेगी।

यूपी : 20 हजार से नीचे पहुंचे एक्टिव केस, 24 घंटे में 1092 नए मामले मिले,लखनऊ मे 57 मरीज़ हैं जबकि 7 मौते हुई हैं एक्टिव केस 1121 जबकि 600 एक्टिव केस होने पर कोरोना कर्फ्यू से ढील दी जाएगी 
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ(संवाददाता) कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह से देशभर में कहर बरपाया था अब उसे राहत मिलती दिख रही है। यूपी में एक्टिव केसों के साथ नए केसों में भी कमी देखने को मिल रही है। अपर प्रमुख सचिव अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि प्रदेश में अब तक पांच करोड़ 10 लाख 32 हजार 967 लोगों की जांच की जा रही है। बीते 24 घंटों में कोरोना संक्रमण के 1,092 नए मामले सामने आए हैं। इस दौरान करीब 4,346 लोग स्वस्थ भी हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में एक्टिव केस घटकर 19 हजार 437 रह गए हैं। वहीं रिकवरी दर भी यूपी में 97.6 प्रतिशत हो गई है। उन्होने बताया कि यूपी में अब तक कुल 16 लाख 56 हजार 763 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं।
यूपी के दो और जिलों में मिली कोरोना कर्फ्यू में ढील
यूपाी सरकार ने शनिवार को बरेली और बुलंदशहर जिलों में सोमवार सात जून से कोरोना कर्फ्यू से ढील दिये जाने की घोषणा की। इन दो जिलों में कोविड-19 संक्रमण वाले इलाकों को छोड़कर बाकी जगह सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक दुकान और बाजार खोलने की अनुमति दी है। प्रदेश में ऐसे जिलों की संख्या अब 67 हो गयी हैं जहां 600 से कम रोगी हैं इस लिये इन जिलों में कोरोना कर्फ्यू से ढील दी गयी हैं।

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