भाजपा पर मायावती का हमला,मुसलमानों का उत्पीड़न कर रही सरकार


जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता) एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी यूपी में मुसलमानों की हालत को लेकर लगातार हमलावर हैं। अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुसलमानों को लेकर योगी सरकार पर हमला किया है। मायावती ने भाजपा सरकार पर मुसलमानों को फर्जी मुकदमो में फंसाकर उनका उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है।मायावती ने मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मौजूदा भाजपा सरकार में धार्मिक अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समाज के लोग हर मामले में व हर स्तर पर काफी ज्यादा दुःखी नजर आते हैं। यूपी की भाजपा सरकार में अब इनकी तरक्की लगभग बन्द सी हो गई है। ज्यादातर फर्जी मुकदमों में फंसाकर इनका उत्पीड़न किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नए-नए नियमों कानूनों से मुसलमानो में दहशत पैदा की जा रही है। साफ तौर पर भाजपा इनके प्रति सौतेला रवैया अपना रही है। बसपा की सरकारों में इनकी तरक्की के साथ-साथ इनके जान-माल की भी पूरी-पूरी इफाजत की गई। इसके साथ जाट समाज के लोगों की भी तरक्की व खुशहाली का पूरा-पूरा ध्यान बसपा की सरकारों में रखा गया। मायावती ने कहा कि बसपा की सरकार बनने पर इन सभी वर्गों के हित व कल्याण का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाएगा और इन सबके बारे में प्रदेश में पार्टी के ओबीसी, जाट एवं मुस्लिम समाज के पदाधिकारी अपने-अपने समाज की छोटी-छोटी बैठकों के ज़रिये काफी कुछ बता रहे हैं जिसके कारण इन वर्गों के लोग बड़ी संख्या में पार्टी से जुड़ रहे हैं। बसपा अध्यक्ष ने फिर दोहराया कि उनकी पार्टी यूपी विधानसभा का अगला आमचुनाव सभी 403 सीटों पर अकेले अपने बूते पर ही पूरी तैयारी के साथ लड़ेगी और उन्हें उम्मीद है कि 2007 की तरह ही पूर्ण बहुमत की सरकार यहाँ फिर से जरूर बनाएगी। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से लम्बे समय तक केन्द्र में रही कांग्रेस की सरकार के समय में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट आने के बावजूद इसे लागू नहीं किया गया। इसे बसपा ने अथक प्रयासों से केन्द्र मे रही वीपी सिंह सरकार से लागू करवाया था और तब फिर जाकर देश में ओबीसी वर्गों के लोगों को दलितों व आदिवासियों की तरह, इन्हें भी काफी कुछ यह आरक्षण की सुविधा मिली है। मायावती ने कहा कि केन्द्र व राज्यों की भी जातिवादी सरकारें इनके आरक्षण को आए दिन नये-नये नियम व कानून आदि बनाकर तथा कोर्ट-कचेहरी का भी सहारा लेकर प्रभावहीन बनाने में लगी है। यही हाल यहां इन वर्गों का यूपी में भी देखने के लिए मिल रहा है। मायावती ने कहा कि देश में दलितों आदिवासियों व अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों के साथ हर स्तर पर हो रही जुल्म-ज्यादती भी अभी तक पूरे तौर से बन्द नहीं हुई है। इसके अलावा, ओबीसी समाज की केन्द्र की सरकार से जो इनकी अलग से जातिगत जनगणना कराने की मांग चल रही है, उससे बसपा पूरे तौर से सहमत है, उसे भी अब केन्द्र सरकार द्वारा जातिवादी मानसिकता के तहत चलकर नजर अन्दाज किया जा रहा है। सपा द्वारा छोटे दलों से गठबंधन करके चुनाव लड़ने की तैयारी और भाजपा की तरह जीत का दावा करने के सम्बंध में पूछे गए सवाल के जवाब में मायावती ने कहा कि यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि किस पार्टी में कितना है दम। जहां तक चुनावी गठबंधन के बारे में प्रश्न है तो उन्होंने कई बार साफ-साफ कहा है कि बसपा विधानसभा का अगला आमचुनाव सभी 403 सीटों पर अकेले अपने बूते पर ही पूरी तैयार के साथ लड़ेगी। भाजपा सरकार के खिलाफ बसपा का जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। विभिन्न पार्टियों के 12 राज्यसभा सांसदों के पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलम्बन से उठे नए विवाद व टकराव सम्बंधी पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह संसद के चालू शीतकालीन सत्र का नहीं बल्कि पिछले मानसून सत्र का मामला है। इस पर अब कार्यवाही की गई है। सरकार को इतना कड़ा रूख नहीं अपनाना चाहिए बल्कि आपस में बातचीत करके इस मामले को सुलझा लेना चाहिए ताकि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके।

एक क़दम और पीछे हटी मोदी सरकार, MSP पैनल के लिए मांगे किसान नेताओं के नाम


जायज़ा डेली न्यूज़ दिल्ली (संवाददाता) किसान नेता दर्शन पाल ने कहा कि एमएसपी और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए एक समिति गठित करने के लिए केंद्र ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से पांच नाम मांगे हैं। इसका फैसला किसान संघों की अंब्रेला बॉडी यानी एसकेएम अपनी 4 दिसंबर की बैठक में करेगी। यह कदम संसद के दोनों सदनों द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विधेयक पारित करने के एक दिन बाद आया है, जिसके खिलाफ किसान एक साल से विरोध कर रहे हैं। पाल ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, “आज, केंद्र ने एसकेएम से उस समिति के लिए पांच नाम मांगे हैं जो फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर विचार करेगी। हमने अभी तक नामों पर फैसला नहीं किया है। हम इसे 4 दिसंबर की बैठक में तय करेंगे।”एसकेएम, 40 से अधिक फार्म यूनियनों की एक संयुक्त शाखा है, जो कि एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी सहित तीन कृषि कानूनों और उनकी अन्य मांगों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है।इस महीने की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों के अनुसार फसल पैटर्न बदलने और एमएसपी को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के विषयों पर निर्णय लेने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान यह घोषणा की जिसमें उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया है, जो पिछले एक साल से किसानों के विरोध के केंद्र में थे।

ट्विटर के नए सीईओ पराग अग्रवाल का मुसलमानो के खिलाफ 11 साल पुराना ट्वीट बना मुसीबत

IIT मुंबई ने ट्विटर के नए CEO पराग अग्रवाल को दी बधाई, प्रोफेसर ने बताया विशिष्ट टॉपर

जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (एजाज़ रिज़वी) पराग अग्रवाल को ट्विटर का नया सीईओ बनाए जाने की घोषणा के साथ ही उन्हें लेकर ट्विटर ही नहीं हर मीडिया में और हर जगह उनके नाम की चर्चा होने लगी, कि वो भारतीय मूल के हैं, आईआईटी बॉम्बे से पढ़े हैं, वग़ैरा,वग़ैरा
लेकिन ट्विटर पर उन्हें लेकर एक अलग चर्चा भी छिड़ गई। सोमवार को जैक डोर्सी के ट्विटर सीईओ का पद छोड़ने के बाद जैसे ही पराग अग्रवाल के नाम की घोषणा हुई, कुछ लोगों ने उनका एक पुराना ट्वीट ढूँढ निकाला।ट्रोलर्स ने उनके एक दशक पुराने ट्वीट को खोज निकाला जिसमें पराग अग्रवाल ने मुसलमान, चरमपंथी, गोरों और नस्लभेद की बात की थी। पराग अग्रवाल के ट्वीट का एक दशक बाद अलग-अलग मतलब निकाला जा रहा है लेकिन इस ट्वीट को लेकर उन्होंने तभी सफ़ाई जारी कर दी थी।पराग अग्रवाल ने 26 अक्तूबर 2010 को एक ट्वीट किया था और तब वो ट्विटर के साथ काम नहीं करते थे।उन्होंने अपने उस ट्वीट में लिखा था, “अगर वो मुसलमान और चरमपंथियों के बीच अंतर नहीं करने वाले हैं तो फिर मुझे गोरे लोगों और नस्लवादियों में अंतर क्यों करना चाहिए?”उनके सीईओ बनने की घोषणा के बाद इस एक दशक पुराने ट्वीट पर नामी-गिरामी लोगों के कमेंट की बाढ़ आ गई है. हालांकि, इस ट्वीट को लेकर उन्होंने पहले ही सफ़ाई जारी कर दी थी। उन्होंने इसी ट्वीट में बताया था कि यह बात कॉमेडियन आसिफ़ मांडवी ने ‘डेली शो’ के दौरान कही थी जिसे उन्होंने ट्वीट किया था. दरअसल इस कार्यक्रम में कई कॉमेडियनों ने भाग लिया था और इसमें काले लोगों के अधिकारों के बारे में बात हो रही थी।दक्षिणपंथी ट्रोल्स लगातार ट्विटर पर ख़ुद को सेंसर किए जाने को लेकर उसकी आलोचना करते रहे हैं. पराग अग्रवाल के पुराने ट्वीट के बहाने लोगों ने ट्विटर को भी नहीं बख़्शा है। अमेरिका में टेनिसी की सीनेटर और रिपब्लिकन पार्टी की नेता मार्शा ब्लैकबर्न ने इस 11 साल पुराने ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा, “ट्विटर के नए सीईओ ने धर्म को पिरामिड स्कीम बताया है। यह वो हैं जो आपकी बात को ऑनलाइन नियंत्रित करने जा रहे हैं।

चौंकाने वाला आंकड़ा: पांच साल में छह लाख से ज्यादा ने छोड़ी भारतीय नागरिकता, जबकि ग्रहण करने वालो की संख्या मात्र 4177
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता)भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों और ग्रहण करने वालों को लेकर सरकार ने संसद में जो जानकारी पेश की है, वह चौंकाने वाली है। इसके अनुसार बीते पांच सालों में छह लाख से ज्यादा लोगों ने भारतीय नागरिकता त्याग दी है। वहीं, इसी अवधि में 4177 लोगों को देश की नागरिकता दी गई।  केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा को बताया कि विदेश मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार 1 करोड़ 33 लाख 83 हजार 718 भारतीय नागरिक विदेशों में रह रहे हैं। 
पांच सालों में इतनों ने छोड़ी नागरिकता
एक सवाल के लिखित उत्तर में मंत्री राय ने कहा कि वर्ष 2017 में 1,33,049 लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी। इसी तरह वर्ष 2018 में 1,34,561 ने, वर्ष 2019 में 1,44,017 ने, वर्ष 2020 में 85,248 ने और 30 सितंबर 2021 तक  1,11,287 ने देश की नागरिकता छोड़ी। 
10,645 ने मांगी नागरिकता, 4177 को प्रदान की
गृह राज्यमंत्री ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि इसी तरह बीते पांच सालों में 10,645 लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। इनमें से 4177 को यह प्रदान की गई। नागरिकता पाने का आवेदन करने वालों में 227 अमेरिका के, 7782 पाकिस्तान के, 795 अफगानिस्तान के और 184 बांग्लादेश के हैं। मंत्री राय ने बताया कि वर्ष 2016 में 1106 लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई। वहीं 2017 में 817 को, 2018 में 628 को, 2019 में 987 को और 2020 में 639 को देश की नागरिकता दी गई। 

परमाणु वार्ता शुरू होने के साथ ही ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की मांग की
परमाणु वार्ता शुरू होने के साथ ही ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की मांग की
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) ईरान ने अपने परमाणु करार पर वियना में फिर से वार्ता शुरू होने के एक दिन बाद मंगलवार को स्पष्ट रूप से कहा कि पहले हुई राजनयिक वार्ताओं के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा हुई थी, उनपर दोबारा बातचीत होनी चाहिए क्योंकि ईरान सभी अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहा है। ईरान की सरकारी मीडिया ने बताया कि ईरान के शीर्ष परमाणु वार्ताकार अली बाकरी और देश के असैन्य परमाणु प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने यह बात कही है।गौरतलब है कि साल 2015 में हुए ईरान के परमाणु करार के तहत ईरान को आर्थिक प्रतिबंध हटवाने के लिये यूरेनियम संवर्धन को सीमित करना था। लेकिन 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका इस समझौते से बाहर निकल गया था। तब से यह करार ठंडे बस्ते में पड़ा था। ईरान 60 प्रतिशत यूरेनियम संवर्धन की क्षमता हासिल कर चुका है और वह परमाणु आयुध बनाने के लिये आवश्यक 90 प्रतिशत यूरेनियम संवर्धन क्षमता हासिल करने के करीब पहुंच गया है। ईरान के सरकारी टेलीविजन पर बाकरी ने पिछले दौर की वार्ताओं को केवल मसौदा करार दिया। उन्होंने कहा, मसौदों पर भी चर्चा होनी चाहिये। लिहाजा, जब तक सभी मुद्दों पर सहमति नहीं बन जाती तब तक कोई सहमति जाहिर नहीं की जा सकती। इस प्रकार, छह दौर में हुई सभी चर्चाओं को संक्षेप में प्रस्तुत कर उनपर बातचीत होनी चाहिए। आज की बैठक में भी सभी पक्षों ने इस बात को स्वीकार किया।एक अन्य टीवी कार्यक्रम में दिखाया गया है कि वियना में बाकरी ने कहा कि ईरान ने नए प्रतिबंध नहीं लगाने और पिछली पाबंदियों को दोबारा लागू नहीं करने की अमेरिका से गारंटी मांगी है। इस्लामी ने ईरान की सरकार द्वारा संचालित समाचार एजेंसी से बात करते हुए यह मांग दोहराई। उन्होंने कहा, वियना में जो वार्ता चल रही है वह परमाणु करार में अमेरिका की वापसी को लेकर है। उन्हें सभी प्रतिबंधों को हटाना होगा।

 

 

 

 

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