अफगानिस्तान:शिया समुदाय की तालिबान से अपील,हमारे अधिकारों की रक्षा की जाए;सरकार में मिले जगह

शिया समुदाय की तालिबान से अपील, हमारे अधिकारों की रक्षा की जाए; सरकार में मिले जगह
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) अफगानिस्तान में उत्पीड़न का सामना कर रहे शिया समुदाय ने तालिबान सरकार से अपने संप्रदाय को औपचारिक तौर पर मान्यता देने और एक समावेशी सरकार के ढांचे में शिया नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की अपील की है।खामा प्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान में शिया लोगों ने अपने सभी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बोलने की स्वतंत्रता और राजनीतिक भागीदारी की सुरक्षा की अपील की है। उन्होंने शिया लोगों के लिए विशेष अदालतें बनाने की भी मांग की, जहां वे अपने कानून को लागू कर सकें। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि अफगान सरकार उनकी भागीदारी के बिना समावेशी नहीं होगी क्योंकि वे अफगान आबादी का 25 फीसद हिस्सा हैं। यह अपील तब की गई है जब कई शिया नेताओं ने 26 दिसंबर को तालिबान पीएम अब्दुल कबीर के राजनीतिक डिप्टी के साथ मुलाकात की और उन्हें अफगानिस्तान में उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया गया।दशकों से अफगानिस्तान के शिया समुदाय के लोगों को हिंसा में निशाना बनाया जाता है। बता दें कि तालिबान शियाओं को विधर्मी मानते हैं। हाल के दिनों में इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासन ने भी शियाओं पर हमले किए हैं। अगस्त 2021 में काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने शियाओं पर हमला न करने का वादा किया था। तालिबान ने अपने कार्यकाल के दौरान शियाओं को बुरी तरह से निशाना बनाया था। अबकी तालिबान ने शियाओं को आशूरा का पवित्र अवकाश मनाने की इजाजत दी है। उन्होंने शिया समुदायों में पहुंच बनाने के लिए एक शिया मौलवी को भेजा है। तालिबान नेताओं ने एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए शिया मस्जिदों का दौरा किया है।
अक्टूबर में मस्जिदों में इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासन द्वारा दो आत्मघाती बम विस्फोटों में एक साथ 90 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों अन्य घायल हो गए। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या तालिबान इस्लामिक स्टेट के अभियान को अफगान शियाओं के खिलाफ कंट्रोल कर पायेगा।

जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी फिर पहुंचे हरिद्वार पुलिस सतर्क
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) विवादित पुस्तक के विमोचन और धर्म संसद में भड़काऊ भाषण देने पर दो मुकदमे दर्ज होने के बावजूद जितेंद्र नारायण त्यागी (पूर्व के वसीम रिजवी) मंगलवार को फिर हरिद्वार पहुंच गए। उत्तरी हरिद्वार के भूपतवाला क्षेत्र में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें जितेंद्र नारायण पहुंचे हैं। हालांकि, पुलिस यह दावा कर रही है कि आयोजकों को सख्त हिदायत दे दी गई है। जितेंद्र नारायण त्यागी (पूर्व के वसीम रिजवी) के खिलाफ पिछले डेढ़ महीने के भीतर दो अलग-अलग मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। हरिद्वार जनपद समेत देश में कई जगहों पर उनकी गिरफ्तारी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जिससे चुनावी मौसम में ना सिर्फ माहौल खराब होने का खतरा बना हुआ है, बल्कि गिरफ्तारी न होने से एक बड़े वर्ग की नाराजगी भी सामने आ रही है।लगातार उठ रही गिरफ्तारी की मांग के बीच मंगलवार को जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी एक बार फिर हरिद्वार पहुंचे। इस कार्यक्रम में कई और लोग भी उत्तर प्रदेश व अन्य प्रदेशों से पहुंचे हैं। वहीं, रिजवी के एक बार फिर हरिद्वार पहुंचने से पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया है।पुलिस अधिकारियों का दावा है कि आयोजकों को सख्त हिदायत दी गई है कि कोई भी ऐसा बयान या टिप्पणी ना की जाए जिससे कि माहौल खराब होने का अंदेशा हो। एसपी सिटी स्वतंत्र कुमार ने बताया कि चुनाव के दौरान शांति व्यवस्था को देखते हुए हर कार्यक्रम व गतिविधि पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।

अपने देश मे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा मे नाकाम पाकिस्तान ने ‘धर्म संसद’ पर वरिष्ठ राजनयिक से अलापा राग
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) बीबीसी न्यूज़ के मुताबिक़ हरिद्वार की ‘धर्म संसद’ में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ हुई भड़काऊ भाषणबाज़ी को लेकर पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में भारतीय राजनयिक को सोमवार को तलब किया। हालंकि खुद अपने देश मे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा मे हमेशा नाकाम साबित हुआ है हज़ारो शिया समुदाए के लोग टारगेट किलिंग मे मारे जा चुके हैं। और पाकिस्तान मे शिया समुदाए के नाम चीन लोग जिलावतन है। कई बार मंदिरों पर हमले भी हुए हैं।पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारतीय दूतावास के सबसे वरिष्ठ राजनयिक एम. सुरेश कुमार को अपनी ‘गंभीर चिंताओं’ से अवगत कराया है।पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आसिम इफ़्तिख़ार अहमद ने बयान जारी किया है कि ‘आज भारतीय चार्ज डी अफ़ेयर्स को विदेश मंत्रालय, इस्लामाबाद में तलब किया गया और भारतीय मुसलमानों के नरसंहार करने के हिंदुत्व समर्थकों के खुलेआम आह्वान पर पाकिस्तान सरकार की गंभीर चिंताओं से भारत सरकार को अवगत कराने को कहा है।हिंदू रक्षा सेना के प्रबोधनाथ गिरि और अन्य हिंदुत्व नेताओं ने जातीय सफ़ाई का आह्वान किया, यह बेहद निंदनीय था लेकिन भारत सरकार ने न इस पर खेद ज़ाहिर किया और न ही इसकी निंदा की और न ही इसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की।पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि ‘हिंदुत्ववादी नेताओं द्वारा इस तरह की भड़काऊ बयानबाज़ी पहले भी हुई है जिसमें सत्ताधारी दल के चुने हुए सदस्य भी शामिल थे जिसके कारण फ़रवरी 2020 में नई दिल्ली में मुस्लिम विरोधी दंगे भी हुए।”अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों का निरंतर गंभीर रूप से उल्लंघन हो रहा है। ख़ासकर मुसलमानों और उनके धर्म स्थलों का,इसके साथ ही केंद्र सरकार और कई बीजेपी शासित राज्य मुस्लिम विरोधी क़ानून बना रहे हैं। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुत्ववादी समूह छोटे-मोटे बहाने बनाकर राज्य के संरक्षण में हिंसा की लगातार घटनाएं अंजाम दे रहे हैं और सज़ा से बच जा रहे हैं। यह भारत के मुसलमानों के भविष्य और इस्लामोफ़ोबिया को लेकर बनती एक गंभीर तस्वीर को दिखाता है.”बयान में कहा गया है कि भारतीय पक्ष से यह बात साझा की गई है कि पाकिस्तान के लोगों और पूरी दुनिया की सिविल सोसाइटी और विभिन्न समुदायों में इस नफ़रत भरे भाषण को लेकर गहरी चिंताएं हैं।बयान में आगे कहा गया है, “पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग करता है कि वो अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार और व्यवस्थित तरीक़े से जारी मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए भारत को जवाबदेह ठहराए। साथ ही नज़दीक आ चुके नरसंहार से बचने के लिए तुरंत क़दम उठाए।”पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे भाषणों और व्यापक हिंसा की घटनाओं की जांच करने और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने की अपेक्षा की गई है।

मुस्लिम देश इंडोनेशिया का रोहिंग्या शरणार्थियों को लेने से इनकार


जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता)इंडोनेशिया के आचे प्रांत के तट पर दर्जनों रोहिंग्या शरणार्थियों की नाव के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उन्हें मलेशियाई जलक्षेत्र में भेजा जा रहा है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। लकड़ी के जहाज पर सवार कम से कम 100 महिलाओं और बच्चों को इंडोनेशिया में शरण देने से मना कर दिया गया था और उन्हें पड़ोसी दक्षिण पूर्व एशियाई देश में जाने के लिए मजबूर किया।गैर-सरकारी संगठनों और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के आह्वान के बावजूद इंडोनेशियाई अधिकारियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में एंट्री देने के मना कर दिया। हालांकि मदद के नाम उनकी क्षतिग्रस्त नाव को ठीक करने के लिए तकनीशियन ग्रुप को भेजने की बात कह रहे हैं।आचेह पुलिस के प्रवक्ता विनार्डी ने एएफपी को बताया, “हमें उम्मीद है कि रोहिंग्याओं को दी जाने वाली मदद उन्हें मलेशिया की यात्रा जारी रखने में मदद कर सकती है। जब तक वे अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाते, हम उन पर नजर रखेंगे।”एक स्थानीय नौसेना कमांडर के अनुसार, लकड़ी की नाव को पहली बार दो दिन पहले देखा गया था, जो इंडोनेशियाई तट से लगभग 70 समुद्री मील दूर फंसी हुई थी। इंडोनेशियाई अधिकारियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को मलेशिया या थाईलैंड जाने का रास्ता नहीं दिया, बल्कि समुद्र के रास्ते आने पर उनके आने पर पाबंदी लगा दी। लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल और यूएनएचसीआर ने सरकार से रोहिंग्या शरणार्थियों के फंसे हुए लोगों को उतरने देने की मांग की है।एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडोनेशिया के कार्यकारी निदेशक उस्मान हामिद ने एक बयान में कहा, “यह लोगों के जीवन और मृत्यु से जुड़ा मामला है। उन लोगों में महिलाएं और बच्चे हैं, हमें उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।” यूएनएचसीआर ने जकार्ता से नाव के यात्रियों को उतरने देने का भी आह्वान किया। स्थानीय मछुआरा समुदाय के नेता बदरुद्दीन यूनुस ने एएफपी को बताया कि नाव में 120 लोग सवार थे, जिनमें 51 बच्चे और 60 महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने कहा कि नाव का इंजन टूट गया था और भाषा की बाधा के कारण शरणार्थी स्थानीय मछुआरों के साथ संवाद नहीं कर सके। गौरतलब है कि पिछले साल बौद्ध बहुल म्यांमार में उत्पीड़न से भागे सैकड़ों रोहिंग्या इंडोनेशिया पहुंचे थे। 1 लाख से अधिक रोहिंग्या की पर्याप्त आबादी के कारण कई लोग मलेशिया भाग गए हैं।

भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के मुकाबले कितना सफल होगा जातीय जनगणना का मुद्दासामाजिक संस्था बहुजन भारत ने अनुसूचित जाति और जनजति के 131 सांसदों को पत्र लिखकर की जातीय जनगणना कराने की मांग

(वरिष्ठ पत्रकार कमल जयंत )

लखनऊ। यूपी में होने वाले विधानसभा के चुनाव में जातीय जनगणना प्रमुख मुद्दा होने जा रहा है। हालाँकि भाजपा और कांग्रेस की कोशिश है कि इस चुनाव में जातीय जनगणना मुद्दा ना बनने पाए। भाजपा अपने कट्टर हिंदुत्व और कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के मुद्दे के साथ मतदाताओं को अन्य तमाम लुभावने वादे करके अपने पक्ष में करने की कवायद में जुटे हैं। वहीं समाजवादी पार्टी समेत कई सामाजिक संगठन भी जातीय जनगणना की मांग प्रमुखता से उठा रहे हैं। दरअसल हिंदुत्व के नाम पर अभीतक भाजपा दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों का वोट हासिल करती रही है, लेकिन इनके अधिकारों की ना तो कोई बात हो रही है और ना ही ये सरकार इन्हें इनके अधिकार देने के पक्ष में है। पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना से इस वर्ग की आबादी की वास्तविक जानकारी हो सकेगी और फिर वह इसी आधार पर अपने अधिकारों और हक़ की मांग कर सकेंगे। यूपी ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी दलित और पिछड़ा वर्ग का नेतृत्व जातीय जनगणना की मांग कर रहा है। दरअसल वर्ष 1931 के बाद से लेकर आजतक पिछड़े वर्ग की आबादी की जनगणना नहीं हुई है। मंडल आयोग की सिफारिश पर पिछड़ा वर्ग के लोगों को नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। सामाजिक संगठन इसे नाकाफी मान रहे हैं। दलितों,पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज के हितों की रक्षा के लिए काम कर रही सामाजिक संस्था बहुजन भारत ने देश के 131 एससी-एसटी सांसदों को पत्र भेजकर जातीय जनगणना कराने की मांग की है। संस्था के अध्यक्ष कुंवर फ़तेह बहादुर ने बताया कि दलित और पिछड़ा वर्ग के सांसदों को पत्र भेजकर ये सुनिश्चित करने को कहा गया है कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बहुजन समाज के हितों की रक्षा करें और इन मुद्दों को संसद में प्रमुखता से उठाएं। संस्था ने जातीय जनगणना के साथ ही न्यायपालिका, सेना और निझी क्षेत्रों में भी आरक्षण व्यवस्था लागू कराने की मांग की है। संस्था के अध्यक्ष कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में न्यायपालिका ने निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर रोक लगा दी है। केंद्र में भाजपा सरकार की है और इस मामले में अभीतक सरकार ने कोई रिव्यु पिटीशन दायर नहीं की है, जिससे ये सवाल उठने लगा है कि भाजपा खुद संविधान में प्रदत स्थानीय निकाय और नगर निकायों में पिछड़ा वर्ग को उनके अधिकार नहीं देना चाहती है। इसके साथ ही ये भी सवाल उठता है कि जब इस वर्ग की आबादी का सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है, फिर किस आधार पर इन वर्गों का निकाय चुनाव में आरक्षण ख़त्म किया जा रहा है। पहली जरूरत ये है कि पिछड़ा वर्ग की जातीय जनगणना कराई जाये, तभी ये पता चलेगा कि इन वर्ग के लोगों को अबतक इनकी आबादी के हिसाब से इन्हे कितने अधिकार मिल चुके हैं। हालाँकि आरक्षण समर्थक दल देश में पिछड़ वर्ग की आबादी 55 फीसदी मान रहे हैं। इन दलों का ये भी मानना है कि यूपी में भी इस वर्ग की आबादी लगभग 60 फीसदी है। यही वजह है कि यूपी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जातीय आधार पर पिछड़ा वर्ग की जातीय जनगणना की मांग तेजी से उठने लगी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो साफ़ तौर पर घोषणा कर दी है कि राज्य में सपा की सरकार बनते ही वह पिछड़े वर्ग की जनगणना कराएंगे। फ़िलहाल यूपी में अति पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ खड़ा दिखाई दे रहा था, लेकिन जातीय जनगणना की मांग उठने से भाजपा की परेशानी बढ़ने लगी है और भाजपा इस मुद्दे को किसी भी तरह जमीन पर नहीं लाने देना चाहती है और वह एकबार फिर अपने कट्टर हिंदुत्व के साथ मथुरा, काशी बाकी है,इस नारे के सहारे चुनाव मैदान में है और इस वर्ग के बीच यही नरेटिव सेट करना चाहती है। जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो साफ़ तौर पर घोषणा कर दी है कि राज्य में सपा की सरकार बनते ही वह पिछड़े वर्ग की जनगणना कराएंगे। अखिलेश यादव को ये बात अच्छी तरह मालूम है कि भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के मुकाबले वह अति पिछड़े वर्ग को अपने पक्ष में लाने के लिए उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए जातीय जनगणना कराने की मांग प्रमुखता से उठा रहे हैं और वे भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के मुकाबले जातीय जनगणना को प्रमुख मुद्दा बनाने के प्रयास में जुटे हैं।फ़िलहाल अभीतक तो यूपी में अति पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ ही खड़ा दिखाई दे रहा था, लेकिन जिस तरह से जातीय जनगणना की मांग उठनी शुरू हुई है उससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ने लगीं हैं, भाजपा अपने हिंदुत्व और मंदिर के मुद्दे के सहारे पिछड़ा वर्ग की जातीय जनगणना की मांग को कितना निष्प्रभावी कर पायेगी ये चुनावी नतीजे ही बताएंगे, लेकिन अखिलेश यादव गैर यादव पिछड़ा वर्ग की जातियों को सपा से जोड़ने के लिए जातीय जनगणना को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाएंगे या बहुतायत अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी को अपनी तरफ लाने के लिए सपा प्रमुख के पास और भी कोई रोड मैप तैयार है। फ़िलहाल जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, वे अपने पत्ते खोलेंगे।

 

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