इसी क़ानून के सेक्शन 4(2) में लिखा है- यदि इस अधिनियम के लागू होने पर, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन के बारे में कोई वाद, अपील या अन्य कार्रवाई किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष लंबित है, तो वह रद्द हो जाएगी और ऐसे किसी मामले में कोई वाद, अपील, या अन्य कार्यवाही दोबारा से किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष शुरू नहीं होगी

जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) बहुत पुरानी कहावत है जिसकी लाठी उसकी भैंस जो आज भी सही साबित हो रही है। उपासना स्थल क़ानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था,वह उसी स्वरूप में रहेगा,उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा।यह क़ानून ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। लेकिन एक क़ानून को ताक़ पर रखकर दूसरे क़ानून का इस्तेमाल किस तरहा किया जाता है। यह क़ाबिले दीद है। जब 1991 में अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए आंदोलन अपने चरम पर था।और साल 1990 में बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी देश भर में रथयात्रा लेकर निकले थे। बिहार में उनकी गिरफ़्तारी हुई थी। उसी साल कारसेवकों पर गोलियां चलीं।पूरे देश में और ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव उबाल पर था। तब 18 सितंबर 1991 में यह क़ानून बनाया गया था।केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार ने संसद से उपासना स्थल कानून पारित कराया था। उपासना स्थल क़ानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था,वह उसी स्वरूप में रहेगा,उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा। यह क़ानून ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। इस क़ानून का सेक्शन (3) कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग (सेक्ट) के पूजास्थल के स्वरूप में किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकता है।इसी क़ानून के सेक्शन 4(1) में लिखा है- यह घोषित किया जाता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस दिन था।
इसी क़ानून के सेक्शन 4(2) में लिखा है- यदि इस अधिनियम के लागू होने पर, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन के बारे में कोई वाद, अपील या अन्य कार्रवाई किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष लंबित है, तो वह रद्द हो जाएगी। और ऐसे किसी मामले में कोई वाद, अपील, या अन्य कार्यवाही दोबारा से किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष शुरू नहीं होगी। इस क़ानून के सेक्शन (5) के तहत अयोध्या विवाद को इससे अलग रखा गया क्योंकि यह मामला आज़ादी से पहले अदालत में लंबित था. इसका एक और अपवाद वो धार्मिक स्थल हो सकते हैं जो पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन आते हैं और उनके रख-रखाव के काम पर कोई रोकटोक नहीं है।साल 1991 के पहले भी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद था, जिनमें से सबसे अहम विवाद साल 1809 में हुआ था जिसकी वजह से सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे। साल 1991 में उपासना स्थल क़ानून बनने के बाद इस मस्जिद में सर्वे के लिए अदालत में याचिका दायर की गई थी।याचिका दायर करने वाले हरिहर पांडेय थे। ‘साल 1991 में तीन लोगों ने ये मुक़दमा दाख़िल किया था।जिनमे सोमनाथ व्यास और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे रामरंग शर्मा इसमें शामिल थे। ये दोनों लोग अब जीवित नहीं हैं’। इस मुक़दमे के दाख़िल होने के कुछ दिनों बाद ही ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने ‘उपासना स्थल क़ानून, 1991’ का हवाला देकर सर्वे के आवेदन को रद्द करने की माँग की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति क़ायम रखने का आदेश दिया था। फिर 2017 में हरिहर पांडेय दोबारा से वाराणसी सिविल कोर्ट पहुँचे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के किसी दूसरे मामले में रुलिंग दी थी कि कोई भी स्टे ऑर्डर 6 महीने से ज़्यादा वैध नहीं हो सकता, 6 महीने के बाद स्टे ऑर्डर का रिन्यू किया जाना ज़रूरी है। सुप्रीम कोर्ट की इसी रुलिंग को आधार बनाकर हरिहर पांडेय ने ज्ञानवापी के स्टे ऑर्डर की वैधता पर सवाल उठाया, वे साल 2019 में वाराणसी सिविल कोर्ट में फिर से याचिका लेकर पहुँचे. इस बार उन्होंने मस्जिद परिसर के सर्वे की माँग भी जोड़ दी। इस मामले में सुनवाई शुरू हुई और इसी सुनवाई के बाद मस्जिद परिसर के पुरातात्विक सर्वे को मंज़ूरी दी गई। लेकिन मस्जिद पक्ष दोबारा से 1991 क़ानून को आधार बनाकर हाईकोर्ट पहुँचा और इस सर्वे पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दिया।हरिहर पांडेय वाली याचिका अब भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में है,और उस पर कोई कानूनी निर्णय नहीं हुआ है।साल 2020 के अक्टूबर में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके 1991 के उपासना स्थल क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए।उन्होंने अपनी दलील में मुख्य तौर पर दो बाते रखीं। पहली यह कि केंद्र सरकार के पास इस क़ानून को बनाने का अधिकार ही नहीं है। उनकी दलील है कि ‘पब्लिक ऑर्डर’ यानी ‘क़ानून-व्यवस्था’ राज्य सरकार का विषय है। नरसिम्हा राव सरकार ने जब ये क़ानून बनाया तो देश और राज्य की बिगड़ती क़ानून व्यवस्था को इसका आधार बनाया। अपनी याचिका में अश्निनी उपाध्याय ने दूसरी दलील ये दी कि ‘पिलग्रिमेज’ यानी ‘तीर्थस्थल’ पर क़ानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को है। लेकिन जब मामला अंतरराष्ट्रीय हो तो, जैसे कैलाश मानसरोवर या ननकाना साहिब, वो अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार का हो जाता है। जब मामला राज्यों से जुड़े धार्मिक स्थलों का हो तो राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला होता है। उसी दौर में इसी से मिलती-जुलती एक याचिका लखनऊ स्थित विश्व भद्रा पुजारी पुरोहित महासंघ ने भी दायर की।सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर अलग-अलग सुनवाई की और केंद्र सरकार से इन पर जवाब माँगा. केंद्र सरकार ने अभी तक कोर्ट में अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।सुप्रीम कोर्ट ने अब दोनों याचिकों पर एक साथ सुनवाई करने का फ़ैसला किया है।18 अगस्त 2021 को पाँच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में एक नई याचिका दाखिल की थी।इन महिलाओं का नेतृत्व राखी सिंह कर रही हैं जो दिल्ली की रहने वाली हैं। बाकी चार महिला याचिकाकर्ता बनारस की निवासी हैं। इन सभी की मांग है कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, आदि विशेष और नंदी जी और मंदिर परिसर में दिख रही दूसरे देवी-देवताओं के दर्शन, पूजन और भोग लगाने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि माँ शृंगार देवी, भगवान हनुमान, गणेश और अन्य देवी-देवता दशाश्वमेध पुलिस थाने के क्षेत्राधिकार में प्लॉट नंबर 9130 में मौजूद हैं जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटा हुआ है।उनकी यह भी मांग है कि अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद को देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए, और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया जाए कि वो “प्राचीन मंदिर” के प्रांगण में देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन, पूजन के लिए सभी सुरक्षा के इंतज़ाम करे।अपनी याचिका में इन महिलाओं ने अलग से अर्ज़ी देकर यह भी मांग रखी थी कि कोर्ट एक अधिवक्ता आयुक्त (एडवोकेट कमिश्नर) की नियुक्ति करे जो इन सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों सुरक्षा सुनिश्चित करे।इसी मांग को पहले ज़िला अदालत और बाद में हाई कोर्ट,दोनों ने सही ठहराते हुए मस्जिद परिसर के निरीक्षण की कार्रवाई को मंज़ूरी दी। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने उपासना स्थल क़ानून पर कोई निर्णय नहीं लिए इस लिए यह कहा जा सकता है ।की जिसकी लाठी उसकी भैंस

Gyanvapi Masjid Case

ज्ञानवापीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘शिवलिंग’ वाली जगह रहेगी सील, मस्जिद में नमाज़ भी जारी रहेगी
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता)सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को आदेश दिया है कि मस्जिद परिसर में जिस जगह ‘शिवलिंग’ मिलने की बात कही जा रही है, उस जगह को संरक्षित रखा जाए. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि मुस्लिम पक्ष के वहाँ नमाज़ पढ़ने पर कोई रोक नहीं होगी.अदालत ने इस मामले पर सुनवाई की अगली तारीख गुरुवार तय की है।हालांकि निचली अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रही कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है. मुस्लिम पक्ष की ओर से ये मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद में यथास्थिति बरकरार रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “वाराणसी की अदालत के फ़ैसले पर हुए विवाद का निराकरण करते हुए ये आदेश दिया जाता है कि 16 मई का आदेश केवल इसी हद तक प्रभावी रहेगा कि वाराणसी के ज़िलाधिकारी ये सुनिश्चित करेंगे कि अगर जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है, अगर वहां किसी के कदम पड़े तो उससे क़ानून और व्यवस्था की समस्या पैदा हो जाएगी।”कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया है कि मुसलमान वहां पर वजू भी कर सकेंगे क्योंकि ये उनकी धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है।मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने जब अदालत से वजू की प्रक्रिया को संरक्षित करने की मांग की तो अदालत ने मौखिक रूप से कहा, “क्या वजू धार्मिक क्रिया नहीं है? हम इसे भी संरक्षित कर रहे हैं।उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता प्रतिनिधित्व कर रहे थे।उनके विरोध के बाद कोर्ट ने वाराणसी के सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रही सुनवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

बसपा सुप्रीमो मायावती।

 

मावायती ने कहा- ज्ञानवापी जैसे मामलों की आड़ में भड़काई जा रही है धार्मिक भावना
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता) बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वो ग़रीबी, बेरोज़गारी और महंगाई से ध्यान बँटाने के लिए चुन-चुन कर धार्मिक स्थलों को निशाना बना रही है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के बीच मायावती ने चेतावनी दी है कि इन सब चीज़ों से यहाँ हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं. पार्टी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में मायावती ने कहा-आज़ादी के वर्षों बाद यहाँ ज्ञानवापी, मथुरा, ताजमहल और अन्य स्थलों के मामलों की आड़ में जिस तरह से षडयंत्र के तहत लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जा रहा है, तो इससे अपना देश मज़बूत नहीं, कमज़ोर ही होगा. इस ओर बीजेपी को ध्यान देने की आवश्यकता है।मायावती ने विशेषकर एक धर्म समुदाय से जुड़े स्थानों के नाम बदले जाने का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि इससे देश में नफ़रत और द्वेष की भावना पैदा होगी। वाराणसी की ज़िला अदालत के एक फ़ैसले के बाद पिछले दिनों ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे हुआ। सर्वे के बाद वाराणसी की अदालत ने ये कहा कि जिस जगह शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है, उसे सील किया जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाख़िल की गई है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी वाराणसी प्रशासन को ये आदेश दिया कि जिस जगह शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है, उसे सुरक्षित रखा जाए। लेकिन नमाज़ में भी बाधा नहीं आनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 19 मई को होगी।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।

ज्ञानपावी मस्जिद के सर्वे पर पहली बार बोले अखिलेश यादव
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता)वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर चल रहे विवाद पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बड़ा बयान दिया है। मंगलवार को आजमगढ़ पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि, भाजपा के लोग जानबूझकर ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिससे कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता का ध्यान न जाए। पेट्रोल-डीजल, खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। महंगाई दर आजादी के बाद सबसे ज्यादा है। भाजपा की केंद्र सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है ऐसे में जानबूझकर इन मुद्दों को उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास इन मुद्दों का पूरा एक कैलेंडर जो कि चुनाव आने तक लगातार उठाए जाते हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।

अब किसी नए मदरसे को अनुदान नहीं देगी उत्तर प्रदेश सरकार
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता)उत्तर प्रदेश सरकार अब किसी भी नए मदरसे को अनुदान नहीं देगी। योगी कैबिनेट ने मंगलवार को मदरसों को अनुदान सूची पर लिए जाने संबंधी नीति को समाप्त किए जाने का प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया। अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि अरबी-फारसी मदरसों में से वर्ष 2003 तक के आलिया (10वीं) स्तर के स्थायी मान्यता प्राप्त मदरसों को अनुदान सूची पर लिए जाने संबंधी नीति को समाप्त किए जाने का प्रस्ताव कैबिनेट में रखा गया था। इस प्रस्ताव के अनुमोदित होने के बाद अब नए किसी भी मदरसे को अनुदान सूची पर नहीं लिया जाएगा।दरअसल, अखिलेश यादव की सरकार में इस सूची में शामिल 146 में से सौ मदरसों को शामिल कर लिया गया था और उनका अनुदान भी शुरू कर दिया गया। बाकी 46 मदरसों का प्रकरण अभी चल रहा था। मंत्री के मुताबिक ये मदरसे मानक ही पूरा नहीं कर रहे थे। अब कैबिनेट में इस नीति को ही समाप्त कर दिया गया है तो नए किसी भी मदरसे को अनुदान की सूची में शामिल नहीं किया जाएगा।

 

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