जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ,अरबो का सबसे गरीब पड़ोसी मुल्क यमन से युद्ध करने वाला सऊदी अरब इस समय दुनिया मे हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है। इन हथियारों का इस्तेमाल वह सिर्फ मुसलमानो पर ही कर रहा है यमन का युद्ध अब अपने पाँचवें साल में प्रवेश कर चुका है । अमरीका स्थित आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेन्ट डेटा के अनुसार दिसंबर 2019 तक यहाँ हिंसा के कारण कम से कम एक लाख मौतें दर्ज की गई हैं। जिसमें हमलों में मारे गए 12,000 आम नागरिक भी शामिल हैं।एक आकलन के अनुसार यहाँ 20 लाख बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। जिनमें पाँच साल की कम उम्र के क़रीब 360,000 बच्चे भी शामिल हैं। यमन मे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है । स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक़ 2015 से लेकर 2019 तक सऊदी अरब को मिलने वाले हथियार का 73 फ़ीसदी आयात अमरीका से हुआ है। इस मामले में दूसरा स्थान ब्रिटेन का है। जिसने कुल 13 फ़ीसदी का योगदान दिया है। तीसरे स्थान पर फ्रांस है, 4.3 फ़ीसदी हथियार सऊदी अरब को फ्रांस से मिले हैं। सीएएटी का मानना है कि सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन से युद्ध शुरू होने के बाद से ‘कम से कम 16 बिलियन पाउंड’ का सौदा किया गया है। इराक़ के ताना शाह सद्दाम हुसैन की तरह सऊदी अरब के हुक्मरान भी मग़रिबी देशो के हाथो की कठ पुतली बने हुए ।पश्चिमी देश मुसलमानों के पैसे से खरीदे गए हथियारों का इस्तेमाल मुसलमानो पर ही करवाह रहे है ।दोहरा चरित्र रखने वाले यही पश्चिमी देश फ़रवरी मे दिल्ली मे हुए हिन्दू मुस्लिम दंगो पर घड़याली आँसू बहा रहे थे । यमन से परेशांन सऊदी अरब ने कोरोना बीमारी का बहाना बना कर अप्रैल मे एकतरफ़ा संघर्ष विराम की घोषणा की थी। लेकिन हूती विद्रोहियों ने संघर्ष विराम को खारिज कर दिया है । संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि कोरोना वायरस से मरने वालों की कुल संख्या पिछले पाँच सालों में युद्ध, बीमारी और भूख से मरने वालों से अधिक है ।

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