जायज़ा डेली न्यूज़ ,(ज़हीर इक़बाल ) तुर्की की मीडिया से जो ख़बरें आ रही हैं उससे प्रतीत

 

होता है कि तुर्की देश दुबारा खिलाफत ए उस्मानिया की तरफ जा रहा है।अगर यह हुआ तो ये सबसे घातक सऊदी अरब के लिए होगा। क्योंकि की उनकी मुस्लिम खास कर अरब देशो की सरबराही ख़त्म हो जायेगी।क्योकि सऊदी अरब शिया सुन्नी का फायदा उठा कर ईरान को पीछे धकेल देता है । 1979 में ईरान में अयातुल्लाह खुमैनी तख्तापलट कर सत्ता में आए ।उसके बाद से लगातार वहाँ धार्मिक नेताओं के हाथ में सत्ता रही है।उनकी कोशिश दूसरे इस्लामी मुल्कों में भी इसे दोहराने की रही है। उनकी इस कोशिश का सबसे पहले सऊदी अरब ने विरोध किया। चूँकि इस्लाम की वहीं से शुरुआत हुई है. मक्का-मदीना वहीं हैं. ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉफ्रेंस का मुख्यालय भी वहीं है इसलिए उन्हें लगाता है कि इस्लामी दुनिया के नेतृत्व वो करेंगे ना कि ईरान ।लेकिन खिलाफत ए उस्मानिया का मामला इसके विपरीत होगा।दूसरे विश्व युद्ध के 100 साल भी कुछ ही वर्षो मे पूरे होने वाले है जिसके बाद संधि के मुताबिक़ सऊदी अरब फिर तुर्की हुकूमत के तहत होगा शायद इस लिए ही तुर्की के राष्ट्रपति खिलाफत पर ज़ोर दे रहे हैं इस मामले में ताज़ा मुहीम अब तुर्की सरकार समर्थित मैगज़ीन गर्सेक हयात ने ख़िलाफ़त के लिए शुरू की है और जनता से एकजुट होने के आह्वान किया है। मैगज़ीन ने अपने ताज़ा अंक में लिखा है, “हागिया सोफ़िया और तुर्की अब आज़ाद हैं, के लिए एकजुट हो जाओ…अगर अब नहीं तो कब?…अगर तुम नहीं तो कौन?मैगज़ीन का मानना है कि इस्लामी ख़िलाफ़त की पुनर्स्थापना के साथ मुसलमान अपने खोए हुए सुनहरे दिन फिर से हासिल कर लेंगे। उस्मानिया साम्राज्य में ख़लीफ़ा प्रमुख शासक हुआ करता था ख़िलाफ़त की पुर्नस्थापना का मतलब है कि फिर से तुर्की में ख़लीफ़ा के पद को स्थापित करना, राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने ख़लीफ़ा का ख़िताब हासिल किया है।बताते चले की अरब में ख़लीफ़ा का अर्थ प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी होता है। अरब में इसे न्यायप्रिय शासन के रूप में देखा गया है। पहले आदम फिर दाऊद और सुलेमान को धरती पर ख़ुदा का ख़लीफ़ा माना जाता है. जब 632 में पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यु हुई तो उनके उत्तराधिकारी को मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में ख़लीफ़ा का ख़िताब मिला था ।हालाँकि शिया समाज का इस्लामी नज़रया इस से कुछ भिन है ।लेकिन फिर भी ईरान अर्दोआन का समर्थन करेगा ।मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने साल 1924 में ख़िलाफ़त का अंत करते हुए तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया था।इस्लामी दुनिया तुर्की के उस्मानी साम्राज्य के पतन को एक बहुत बड़ी त्रासदी के रूप में देखती है।उन्हें लगता है कि इस घटना के बाद मुस्लिम समाज पूरी दुनिया में निर्बल और बदहाल हो गया।हाल ही में तुर्की के मशहूर म्यूज़ियम हागिया सोफ़िया को मस्जिद में बदलने की घोषणा की गई थी। इसके बाद यहाँ 86 साल के बाद पहली बार पिछले शुक्रवार 24 जुलाई को नमाज़ भी अदा की जा चुकी है।

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