योगी सरकार के खिलाफ अदालत गए वसीम रिज़वी को नहीं मिल सकी राहत
शिया वक़्फ़ बोर्ड के गठन को चुनौती देने वाली याचिका पर अगले महीने नवम्बर मे होगी सुनवाई
जायज़ा डेली न्यूज़ लखनऊ (संवाददाता) योगी सरकार के खिलाफ अदालत गए वसीम रिज़वी को फ़िलहाल कोई राहत नहीं मिल सकी है।आज लखनऊ हाई कोर्ट की दो जजों पर मुश्तमिल बेंच ने दो बार सुनवाई की,बहेस के बाद अदालत ने अगले महीने नवंबर की पहली तारीख़ बहस के लिए तैय करते हुए सरकार से निर्देश मगाए हैं। हालाँकि आज पूरी बहस का केंद्र ज़रयाब जमाल रिज़वी ही रहे जिनके लिए पिटीशनर वसीम रिज़वी का कहना था की ज़रयाब रिज़वी तो दिल्ली बार कौंसिल मे रजिस्टर्ड वकील हैं तो उनको उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड मे सदस्य कैसे बना दिया गया है।अदालत ने इस पर संज्ञान लिया है।जस्टिस राकेश श्रीवास्तव और जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने सुनवाई करते हुए सरकार का पक्ष जाना वसीम रिज़वी के वकील सीनियर अधिवक्ता जय नारायण माथुर ने बहस करते हुए सरकार पर इल्ज़ाम लगाया की वह शिया वक़्फ़ बोर्ड को लोकतांत्रिक तरीक़े से नहीं चलाना चाहती है। उन्होने कहा की उन्होंने कहा है की अधिवक्ता कोटे से नामित वकील शबाहत हुसैन और ज़रयाब जमाल रिज़वी सीनियर वकील नहीं हैं। ज़रयाब जमाल रिज़वी के लिए तो सरकार ने यह जानने की कोशिश भी नहीं की के यह यूपी के हैं भी के नहीं सरकार की तरफ से एसीऐससी एच पी श्रीवास्तव ने बहस की और अगली तारीख़ पर सरकारी निर्देश मागाने तक मुहलत मांगी। लाख कोशिश के बाद भी अदालत शिया वक़्फ़ बोर्ड की अधिसूचना को स्टे करने या ख़त्म करने पर राज़ी नहीं हुई।बताते चले की ज़रयाब जमाल रिज़वी का नाम उन चार लोगों मे शामिल था जिनको मौलाना कल्बे जवाद की मंशा के खिलाफ शिया वक़्फ़ बोर्ड का सदस्य नामित करने का एलान किया गया था उन चार लोगों मे हसन कौसर मौलाना रज़ा हुसैन वकील शबाहत हुसैन और ज़रयाब जमाल रिज़वी का नाम शामिल था जबकि मौलाना की मंशा के मुताबिक़ जो नाम थे उनमे अली ज़ैदी अधिवक्ता सय्यद इक़बाल हसन,मौलाना रज़ा हुसैन,वकील शबाहत हुसैन और डॉ नुरुस का नाम शामिल था। प्रमुख शिया धर्म मौलाना कल्बे जवाद शिया वक़्फ़ बोर्ड मे ईमानदार और साफ सुथरी छवि के लोग चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने मुख्य मंत्री से कई बार मुलाक़ात करके शिया वक़्फ़ बोर्ड मे हो रही लूट खसोट को रोकने की बात कही थी और इस बार बोर्ड के गठन मे ईमानदार लोगों को लाने का मुतालबा किया था। क्योंकि मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम चलाए हुए हैं।उन्होने मौलाना की बात को तरजीह दी लेकिन अब सवाल ये पैदा होता है की अधिवक्ता सय्यद इक़बाल हसन का नाम काट कर ज़रयाब जमाल रिज़वी का नाम क्यों शामिल किया गया और सरकार के कारिन्दों ने इतना भी जानने कोशिश नहीं की के ज़रयाब दिल्ली बार कौंसिल मे रजिस्टर्ड वकील हैं।बहार हाल अब देखना ये है की सरकार ज़रयाब जमाल रिज़वी को बोर्ड पर तरजीह देती है या शिया वक़्फ़ बोर्ड को ज़रयाब पर तरजीह देती है। क़ानूनी जानकारों की अगर मानी जाए तो सरकार के पास ये भी रास्ता है की वह ज़रयाब जमाल की जगह किसी दूसरे को मुन्तख़ब कर दे। ये भी बताते चले की सरकारी अमले की लापरवाही की वजहा से ये तीसरा मौक़ा है जब उत्तर प्रदेश सरकार को शिया वक़्फ़ बोर्ड के मामले मे अदालत मे चुनौती दी गई है। जिसमे दो बार सरकार हार का मुँह देखना पड़ा था पहला मौका वह था जब सरकार ने शिया वक़्फ़ बोर्ड को भंग और अदालत ने रोक लगा दी। दूसरा मौक़ा वह था जब सरकार ने शिया वक़्फ़ बोर्ड मे प्रशासक बैठाया और अदालत मे चुनौती के बाद उस फैसले को वापस लेना पड़ा अब ये तीसरा मौक़ा है जब योगी सरकार को वसीम रिज़वी द्वारा अदालत मे चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

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