बशर अल-असद चौथी बार बने सीरिया के राष्ट्रपति,चुनावों में हासिल किये 95.1% मत
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) सीरिया के राष्ट्रपति चुनाव में बशर अल-असद ने ज़बरस्त जीत हासिल कर लगातार चौथी बार सत्ता अपने हाथ में बरक़रार रखी है। देश में बुधवार को हुए चुनावों में असद को 95.1% मत मिले। उन्हें चुनौती देने वाले दो उम्मीदवारों में से महमूद अहमद मारी को 3.3% और अब्दुल्ला सालौम अब्दुल्ला को 1.5% मत हासिल हुए। सीरिया के विपक्षी दलों ने इस चुनाव को पाखंड बताते है। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कहा है कि ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था। बशर अल-असद ने नतीजों से पहले ही, मतदान के दिन कह दिया था कि पश्चिम की प्रतिक्रिया उनके लिए “ज़ीरो” है। गत 26 मई को हुए चुनाव के अधिकारिक चुनाव परिणामों में असद को करीब एक करोड़ 42 लाख वोट मिले। इस जीत के साथ ही अब बशर अल-असद के एक बार फिर से अगले 7 साल तक के लिए राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया है। इस बीच अमेरिका समेत पश्चिम देशों ने सीरिया के चुनाव को खारिज कर दिया है और कहा कि यह न तो स्वतंत्र तरीके से हुआ है और न ही निष्पक्ष है। सीरिया में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद लगातार दूसरी बार असद राष्ट्रपति चुने गए हैं। इस गृहयुद्ध में करीब 4 लाख लोग मारे गए हैं और लाखों की तादाद में लोगों को अपना घर बार छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी है। यही नहीं पूरे देश में आधारभूत ढांचा तबाह हो चुका है। सीरिया में इतने ज्यादा बमों की बारिश हुई है कि उसका ज्यादातर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है। असद की जीत के बाद सीरिया में जश्न का माहौल देखा गया। हजारों की संख्या में स्थानीय लोग असद के पोस्टर लेकर निकल आए और ड्रम बजाते हुए डांस किया। लटाकिया और राजधानी दमिश्क में हजारों लोगों ने रैली निकाली। देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह का माहौल देखा गया। सीरिया में वर्ष 2011 में गृहयुद्ध शुरू हुआ था और अब देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी में पहुंच गई है। इससे पहले 30 वर्ष तक सीरिया में असद के पिता हाफेज का शासन था।बशार अल असद को दुनियाभर में तानाशाह राजनेता के तौर पर देखा जाता है। यही कारण है कि सीरिया की विपक्षी पार्टियों ने इस चुनाव को खारिज किया है। असद को रूस के खुले समर्थन के कारण अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने भी इस चुनाव की सत्यता और प्रमाणिकता पर सवाल उठाए हैं। उनका दावा है कि असद के सत्ता पर काबिज रहते सीरिया में निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। देश के उत्तरपूर्वी सीरिया में मतदान नहीं हुआ क्योंकि यहां पर अमेरिका समर्थित कुर्दिश लड़ाकों का नियंत्रण है और न ही उत्तर पश्चिमी इदलिब प्रांत में मतदान हुआ जहां पर विद्रोहियों का कब्जा है। वहीं दक्षिणी प्रांत दारा और स्वीडा समेत सरकार के नियंत्रण वाले कई क्षेत्रों में लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया था।
इस्लामिक देश एकजुट, इसराइल के ख़िलाफ़ यूएन में अहम प्रस्ताव पास,चीन,रूस पाक समेत कई देशों ने किया प्रस्ताव के पक्ष मे वोट भारत मतदान में शामिल नहीं हुआ,संयुक्त राष्ट्र इसराइल विरोधी मंशा से ग्रस्त है:बिन्यामिन नेतन्याहू
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष मानवाधिकार संस्था ग़ज़ा में इसराइल और चरमपंथी संगठन हमास के बीच 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष की जाँच ‘युद्ध अपराध’ के तौर पर करेगी। यूएनएचआरसी यानी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में यह प्रस्ताव 24-9 वोट से पास हुआ। 14 देश मतदान से बाहर रहे। मतदान न करने वालों में भारत भी शामिल है। गुरुवार को यूएनएचआरसी का फ़लस्तीनियों के अधिकारों को लेकर ख़ास सत्र बुलाया गया था। इस सत्र में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के सदस्य देश एकजुट रहे।ओआईसी फ़लस्तीनियों के पक्ष में खुलकर खड़ा था।वोटिंग से बाहर रहने वाले देश हैं- भारत, फ़्रांस, इटली, जापान, नेपाल, नीदरलैंड्स, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, फिजी, बहमास, ब्राज़ील, डेनमार्क, टोगो और यूक्रेन।इसराइल के ख़िलाफ़ वोट करने वाले अहम देश हैं- चीन, रूस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपींस, अर्जेंटीना, बहरीन, क्यूबा, इंडोनेशिया, लीबिया, मेक्सीको, नामीबिया, उज़बेकिस्तान, सोमालिया और सूडान. इसराइल के साथ देने वाले देश हैं- ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, कैमरून, चेक रिपब्लिक, जर्मनी, मलावी, मार्शऑल आईलैंड्स, ब्रिटेन और उरुग्वे। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने 16 मई को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा था कि भारत फ़लस्तीनियों के मुद्दों को लेकर मज़बूती से खड़ा है और वो इस समस्या के समाधान के लिए ‘दो राष्ट्र’ का समर्थन करता है। इस बार भी भारत ने वही बात दोहराई। यूएनएचआरसी के रुख़ को लेकर इसराइल ने सीधा निशाना साधा है. इसराइली विदेश मंत्रालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया है, ”2014 में यूएनएचआरसी ने आतंकवादी संगठन आईएआईएस की निंदा की. 2015 में यूएनएचआरसी ने बोकोहराम की निंदा की। लेकिन 2006 से 2021 तक यूएनएचआरसी ने हमास के लिए कुछ भी नहीं कहा।”गुरुवार को यूएनएचआरसी में पास किए गए प्रस्ताव को इसराइल ने ख़ारिज कर दिया है।युद्धविराम से पहले 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष में ग़ज़ा में कम से कम 248 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 66 बच्चे और 39 महिलाएं हैं. इसराइल में भी 12 लोगों की मौत हुई है. इसराइल का कहना है कि उसने हमास के रॉकेट के जवाब में हमले किए थे। यूएनएचआरसी के इस प्रस्ताव पर इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इसराइली पीएम ने यूएनएचआरसी के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ”यूएनएचआरसी में लिया गया शर्मनाक फ़ैसला एक और उदाहरण है कि संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था कैसे इसराइल विरोधी मंशा से ग्रस्त है। एक बार फिर से ऑटोमैटिक बहुमत वाली इस काउंसिल ने जनसंहार करने वाले आतंकवादी संगठन, जिसने जानबूझकर इसराइली नागरिकों को निशाना बनाया और ग़ज़ा के लोगों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया, उसके अपराधों पर पर्दा डाल दिया है। इसराइल प्रधानमंत्री ने कहा, ”हम एक लोकतांत्रिक देश हैं और हमने हज़ारों बेलगाम रॉकेट हमले से अपने लोगों को बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई की थी. इसे लेकर हमें ‘दोषी पक्ष’ क़रार दिया है. यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का मज़ाक है और दुनिया भर में आतंकवादियों के लिए प्रोत्साहन देने वाला साबित होगा। संयुक्त राष्ट्र के इस मानवाधिकार काउंसिल ने ग़ज़ा, इसराइल और वेस्ट बैंक में अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए जांच आयोग बनाने का फ़ैसला किया है। इसे सबसे प्रभावी क़दम माना जा रहा है. इसराइल के ख़िलाफ़ पहली बार बहुमत से जाँच आयोग गठित करने का फ़ैसला हुआ है। यह जाँच आयोग 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष की जड़ की भी जाँच करेगा. यूएनएचआरसी में पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार अस्थिरता, हिंसक संघर्ष के बचाव, भेदभाव और दमन की भी जाँच होगी. इसमें कुछ देशों से हथियारों की आपूर्ति को लेकर भी टिप्पणी की गई है और कहा गया है कि यह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन है. इस टिप्पणी का निशाना उन देशों पर है जो इसराइल को हथियार देते हैं। चीन, रूस और पाकिस्तान उन देशों में से हैं, जिन्होंने इसराइल के ख़िलाफ़ मतदान किए। कई पश्चिमी और अफ़्रीकी देशों ने इसराइल के समर्थन में मतदान किए हैं। जेनेवा में यूएन के स्थायी ब्रिटिश राजदूत सिमोन मैनली ने कहा कि इससे बहुत कुछ हासिल नहीं होगा। ऑस्ट्रिया के राजदूत ने कहा कि यूएनएचआरसी का प्रस्ताव खेदजनक है. वहीं रूसी प्रतिनिधि ओल्गा वोरोनोत्सोवा ने कहा है कि उनके मुल्क ने इस प्रस्ताव का इसलिए समर्थन किया क्योंकि इससे हिंसक संघर्ष के कारण सार्वजनिक हो सकेंगे। इसराइल के दोस्त देशों ने यूएनएचआरसी की इस बैठक का विरोध किया था। अमेरिका यूएनएचआरसी में 47 सदस्य देशों में शामिल नहीं है। इसलिए वो वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सका. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को यूएनएचआरसी से बाहर कर लिया था।मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मीचेल बैचलेट ने सत्र की शुरुआत में कहा कि इसराइल को हालिया हिंसक संघर्ष की स्वतंत्र जाँच की अनुमति देनी चाहिए। पिछले हफ़्ते संघर्षविराम से पहले इसराइल और हमास के बीच की लड़ाई में सैकड़ों लोगों की जान गई थी।बचलेट ने कहा, ”ऐसे हमले युद्ध अपराध जैसे होते हैं। इसका असर आम लोगों को पर बहुत गहरा पड़ता है. इसराइल अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करे और ऐसा अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत होना चाहि।”बचलेट ने कहा कि हमास के बेलगाम रॉकेट हमले भी युद्ध के नियमों का खुला उल्लंघन है।बचलेट ने कहा कि हमास ने इसराइल में रिहाइशी इलाक़ों पर रॉकेट से हमला किया था। भारत मतदान में शामिल नहीं हुआ भारत के साथ 13 और देश मतदान से बाहर रहे. 24 देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया और 9 देशों ने इसराइल का साथ दिया. भारत ने 27 मई को यूएनएचआरसी में वही बात कही जो पिछले कई बयानों में कही गई है- भारत फ़लस्तीनियों के मुद्दों के साथ खड़ा है. भारत के हालिया बयानों को लेकर कहा जा रहा है कि उसका रुख़ इसराइल की तरफ़ है।इसराइल ने कहा है कि यूएनएचआरसी का निर्माण इसराइल विरोधी बहुमत से किया गया है और इसका संचालन पाखंड से भरा है. इसराइली विदेश मंत्रालय ने कहा कि इसराइल पर एक आतंकवादी संगठन ने 4,300 रॉकेट से हमले किए लेकिन एक भी निंदा प्रस्ताव पास नहीं किया गया।इसराइल विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ”हमास का नाम तक नहीं लिया गया. यूएनएचआरसी एक पाखंडपूर्ण संस्था है। इसराइली सुरक्षा बलों ने अंरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए जवाबी कार्रवाई की है। हमास ने वैश्विक युद्ध अपराध किया है। उसने ग़ज़ा में रिहाइशी इलाक़ों से इसराइल के रिहाइशी इलाक़ों पर हमला किया है. हम इस इस प्रस्ताव को ख़ारिज करते हैं. इसराइल हमास से अपना बचाव करना जारी रखेगा. हम उन देशों का आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
तुर्की ने भारत को भेजी कोविड मदद,भारत ने तुर्की को दिया धन्यवाद
जायज़ा डेली न्यूज़ नई दिल्ली (संवाददाता) कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने वाले तुर्की ने भारत को कोरोना के खिलाफ चिकित्सीय मदद भेजी है। सामरिक और कूटनीतिक मामलों के जानकारों को पाकिस्तान के खास दोस्त तुर्की की भारत को मदद आसानी से स्वीकार नहीं हो रही है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन कई मौकों पर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच से जहर उगल चुके हैं।कोरोना वायरस महामारी की भीषण लहर से जूझ रहे भारत को तुर्की ने मदद भेजी है। बुधवार को तुर्की का सैन्य विमान इस मदद को लेकर नई दिल्ली पहुंचा। कश्मीर को पाकिस्तान का बताने वाले तुर्की की भारत को मदद संदेह भी पैदा कर रही है। दरअसल, तुर्की के तानाशाह राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र में भी कई बार कश्मीर का मुद्दा उठा चुके हैं। यही कारण है कि पिछले एक दशक से भारत और तुर्की के बीच के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजतक तुर्की का दौरा नहीं किया है।तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए टर्किश सैन्य विमान ने कई चिकित्सीय उपकरण भारत को भेजा है। इसमें द्वारा तैयार 630 ऑक्सीजन ट्यूब, पांच ऑक्सीजन जनरेटर, 50 वेंटिलेटर और टैबलेट मेडिसिन शामिल हैं। इन उपकरणों को तुर्की रेड क्रिसेंट सोसाइटी और तुर्की के स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से भेजा गया है।तुर्की के सहायता उपकरणों वाले बक्सों के ऊपर १३वीं शताब्दी की कवि मेवलाना रूमी के शब्द ‘निराशा के बाद आशा और अंधेरे के बाद कई सूरज’ लिखा हुआ था। तुर्की रेड क्रिसेंट के प्रमुख इब्राहिम अल्तान ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के आदेश पर स्वास्थ्य और रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर तुर्की के विदेश मंत्रालय की मदद से भारत को सहायता भेजी है।इधर भारत ने भी तुर्की का धन्यवाद जताया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर लिखा कि आज आने वाली चिकित्सा आपूर्ति की खेप के लिए टर्किश रेड क्रिसेंट सोसाइटी को धन्यवाद। दूसरे ट्वीट में लिखा कि तुर्की सरकार की ओर से एकजुटता के इस भाव की सराहना करते हैं।तुर्की और पाकिस्तान केवल रक्षा संबंधों में ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी एक दूसरे का आंख बंदकर समर्थन करते हैं। हाल में ही जब ग्रीस के साथ भूमध्य सागर में सीमा विवाद हुआ तो पाकिस्तान ने बिना सच्चाई जाने खुलेआम तुर्की के पक्ष में समर्थन का ऐलान किया था। इतना ही नहीं, भूमध्य सागर में पाकिस्तान और तुर्की की नौसेनाओं ने युद्धाभ्यास कर एकजुटता का ऐलान भी किया। इसके बदले में तुर्की कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का खुला समर्थन करता है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन तो इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भी उठा चुके हैं। एर्दोगन ने फरवरी 2020 में कहा कि यह मुद्दा तुर्की के लिए उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि पाकिस्तान के लिए।