मौलाना कल्बे जवाद की कोशिश रंग लाई,कश्मीर मे 30 साल बाद मुहर्रम जुलूस को मिली इजाजत,1990 में आतंकवाद की शुरुआत होने के बाद से इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था,बीजेपी सरकार ने ही उठवाए थे लखनऊ मे अज़ादारी के जुलूस,बताते चले की 1997 मे थीं शिया जवानो के आत्मदाह के बाद मौलाना कल्बे जवाद ने लखनऊ मे अज़ादारी की तहरीक चलाई थी। उस वक़्त बीजेपी की हिमायत से चल रही मायावती सरकार ने मौलाना को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।लेकिन उसके बाद पुरे उत्तर प्रदेश मे शिया सड़को पर उतर आए थे।साथ ही पूरे देश से मौलाना के समर्थन मे मुसलमानो ने सरकार पर उनकी रिहाई का दबाओ बनाया था जिसके बाद मौलाना को रिहा कर दिया गया था। बाद मे कल्याण सिंह सरकार ने 1998 मे प्रमुख सचिव गृह आर आर शाह और डीजीपी श्री राम अरुण की कमेटी बना कर बीजेपी सरकार ने ही लखनऊ मे अज़ादारी के जुलूस उठवाए थे।


जायज़ा डेली न्यूज़ दिल्ली (ज़हीर इक़बाल ) मौलाना कल्बे जवाद की कोशिश रंग लाई,तीस साल बाद कश्मीर मे अज़ादारी के जुलूस बरामद किए जाने की इजाज़त दे दी गई है। ऐसे समय इजाज़त दिया जाना की जब पूरे देश मे कोरोना की वजहा से जुलूसों पर पाबन्दी है।मौलना कल्बे जवाद की सियासी सूझबूझ और हिकमते अमली को दर्शाता है। बताते चले की केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने कश्मीर के कई दौरे किये थे। मौलाना ने एलजी मनोज सिन्हां से मुलाक़ात कर के अज़ादारी के जुलूसों से पाबन्दी हटाए जाने और कश्मीर मे शिया वक़्फ़ बोर्ड के गठन के अलावा परिसीमन कराए जाने का मुतालबा किया था। इससे पहले मौलाना कल्बे जवाद दिल्ली की कर्बला शाहे मर्दान की करोड़ो रूपये की बेश क़ीमती ज़मीन ख़ाली कराने,भोपाल मे तीन हज़ार की शिया आबादी को उजड़ने से बचाने और लखनऊ मे सिब्तैनाबाद इमाम बाड़े के अलावा आलम नगर मे बीघों ज़मीन माफियाओ के चंगुल से बचा कर शिया फ़िरक़े को हज़ारो घर मुहैया कराने जैसे नामुमकिन कामो को अंजाम दे कर अपनी ताक़त का लोहा मनवा चुके है। लखनऊ मे अज़ादारी के जुलूस भी मौलाना कल्बे जवाद की तहरीक ए अज़ादारी का समर हैं।

लेकिन जिस तरहां क़ौम के गद्दारो की वजहा क़ौम को नुक़सान उठाना पड़ा और पड़ रहा है। वही हाल कश्मीर का भी है। श्रीनगर के लाल चौक इलाके में तीन दशक बाद प्रतीकात्मक मुहर्रम जुलूस की अनुमति देने के प्रशासन के फैसले को लेकर कश्मीर में शिया समुदाय मे वह लोग विरोध कर रहे है जो गैर बीजेपी दलों से सम्बन्ध रखते है। और उनको अपनी सियासी ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है।हालाँकि इसमे अक्सरीयत इसका स्वागत कर रही है।

जम्मू ऐंड कश्मीर शिया एसोसिएशन ने दावा किया है कि प्रशासन ने 30 साल बाद जुलूस की अनुमति देने का फैसला किया है और उसने इस कदम का स्वागत किया है। लेकिन शिया नेता और पूर्व मंत्री आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने कहा कि इस फैसले को लेकर जवाब की तुलना में सवाल कहीं अधिक उठते हैं।ऑल जम्मू ऐंड कश्मीर शिया एसोसिएशन के अध्यक्ष इमरान रजा अंसारी ने कहा कि वे तीन दशक के अंतराल के बाद कश्मीर में मुहर्रम के जुलूस की अनुमति देने के फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘इंशाअल्लाह एजेके शिया एसोसिएशन पुरानी परंपरा के तहत इस साल जुलूस का नेतृत्व करेगा।’ अंसारी ने अंजुमन-ए-शरी शियां अध्यक्ष आगा सैयद हसन अल मूसावी को जुलूस में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, जो लगभग तीन दशक तक अलगाववादी राजनीति से जुड़े रहे हैं।

पारंपरिक मुहर्रम जुलूस लाल चौक से डलगेट क्षेत्र सहित शहर के कई इलाकों से होकर गुजरता था, लेकिन 1990 में आतंकवाद की शुरुआत होने के बाद से इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि प्राधिकारियों का कहना है कि इस धार्मिक आयोजन का इस्तेमाल अलगाववादी राजनीति के प्रचार के लिए किया गया है। मेहदी ने अबीगुजर से लाल चौक तक प्रतीकात्मक जुलूस निकालने की अनुमति देने के प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाए। बडगाम विधानसभा क्षेत्र से नेशनल कॉन्फ्रेंस का तीन बार प्रतिनिधित्व करने वाले मेहदी ने कहा, ‘लिए गए निर्णयों की सूची सामने आई है, जिसमें यदि मैंने इस आदेश को सही तरह से समझा है तो प्रशासन ने 30 साल के अंतराल के बाद 10वें मुहर्रम जुलूस को अबीगुजर से लाल चौक (2018 में प्रस्तावित एक अस्थायी और वैकल्पिक मार्ग) तक निकालने की अनुमति देने का निर्णय लिया है।’मेहदी ने कई ट्वीट में कहा कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब प्रशासन ने वार्षिक अमरनाथ यात्रा स्थगित कर दी है। इस साल कोविड महामारी के मद्देनजर आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू करके जामा मस्जिद और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर ईद की नमाज की अनुमति नहीं दी थी। उन्होंने कहा, ‘कुछ दिनों पहले ही पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर) ने लोगों से कोविड प्रोटोकॉल का आह्वान करते हुए कहा था कि वे अपने घरों में ईद मनाएं। फिर से कोविड -19 प्रोटोकॉल को लागू करते हुए जामा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ को पिछले 100 से अधिक शुक्रवारों से अनुमति नहीं दी गई है और इसे प्रतिबंधित करना जारी रखा गया है। सूची लंबी है।’ मेहदी ने कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि अन्य सभी प्रमुख धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध जारी रखा गया है और इसमें कोई भी विशेष धर्म अपवाद नहीं है, ’30 साल के अंतराल के बाद अबीगुजर से लाल चौक तक 10 वें मोहर्रम जुलूस के बारे में अचानक लिया गया। यह फैसला जवाब के बजाय सवाल कहीं अधिक उठाता है।’ उन्होंने कहा, ‘उन सवालों के जवाब देने के लिए और यह स्पष्ट करने के लिए कि इस फैसले के पीछे कोई नापाक मंशा नहीं है, इस 10वें मुहर्रम जुलूस से पहले जामा मस्जिद में जुमे की नमाज होनी चाहिए।’सभी धर्मों के अन्य प्रमुख धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध जारी रहता है और ‘केवल इस विशेष जुलूस को अचानक प्रोत्साहित किया जाता है, तो मैं समझूंगा कि इसके पीछे नापाक मंसूबे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘लोगों को इस प्रलोभन और इस जाल में नहीं फंसना चाहिए।’ मेहदी ने कहा कि इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण की जिम्मेदारी प्रशासन की है।’मेहदी ने कहा, ‘अब जब इस साल ईद की नमाज का समय बीत चुका है। जामा मस्जिद में भी जुमे की नमाज पर प्रतिबंध हटाएं, जैसे आपने अचानक यह फैसला लिया और साबित करें कि कोई नापाक मंशा नहीं है।

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